खिड़कियां व नकल


सारे मुल्क ने देखा l कई कई बार देखा l इसलिए देखा क्योंकि देखने में कोई हर्ज़ नहीं था कि दीवारों में खिड़कियाँ होती हैं l सिर्फ होती ही नहीं वरन उसमें रहती हैं l दीवार के उस पार मूढ़मति नकलची रहते हैं l दीवार के इस पार अक्लमंद नकल प्रोवाइडर रहते हैं l इसके आरपार हमारी शिक्षा प्रणाली और पूरा सिस्टम रहता है l सिस्टेमेटिक तरीके से रहता है l इसमें सबकी अपनी -अपनी भूमिका होती है l समस्त अभिनेता अपने रोल को पूरी लगन और शिद्दत से निबाहते हैंl 
खिड़कियों से केवल ताज़ी हवा और रौशनी ही नहीं आती ,इसमें से शानदार नम्बरों से लदीफदी मार्क्सशीट और सर्टिफिकेट पाने का शार्टकट निकलता है l खिड़कियों की मुंडेरों पर कबूतरों की तरह टिक कर नकल करवाने और गुटुरगूं गुटरगूँ करने का हुनर आता है l जांबाजी दिखाने का मौका मिलता है l यह भी पता लगता है कि खिड़कियों की सत्ता केवल कम्प्यूटर की विंडोज तक ही सीमित नहीं है l नैटजनित आभासी संसार से इतर भी खांटी खिड़कियों की उपयोगिता बरक़रार है l खिड़कियाँ कालजयी होती हैं l
एक वक्त था जब इन्हीं खिड़कियों की वजह से नैनों की विविध भावभंगिमा की रोशनाई से लिखे अदृश्य प्रेमगीतों का आदानप्रदान हो जाया करता था l अनेक लोग इन्हीं खिड़कियों के चलते सफल या असफल प्रेमी बने l कालांतर में उनमें से कुछ सफल प्रेमी बन कर बच्चों के पापा हो गए और खिड़कियाँ उनसे दूर होती गयीं l असफल टाइप के प्रेमी खिड़कियों से ताउम्र चिपके रह गए और अपने प्रेम की भूली बिसरी दास्तान का पुनर्पाठ करते रहे l
कम्प्यूटर पर डेरा जमाए विंडोज ने सूचना के आदानप्रदान को नितांत आसान बना दिया है l विद्यालयों की खिड़कियों ने नकल की अहमन्यता कम नहीं होने दी है l सोशल मीडिया पर नकल की वायरल हुई फोटो ने नकल के कारोबार की ख्याति को ग्लोबल कर दिया है l सबको पता लग गया है कि सर्वांगीण विकास नकल और अक्ल के मिक्सचर से होता है l विंडोज के जरिये खिड़कियों को नया आयाम और व्यापक पहचान मिली है l सर्वशिक्षा अभियान को गति मिली है l सूबे का नाम रोशन हुआ है l शिक्षा के क्षेत्र में अन्य पिछड़े हुए राज्यों के मन में तरक्की की आस जगी है l रुखे सूखे अध्ययन मनन की सनातन परिपाटी में हींग , जीरे और लहसुन का स्वादिष्ट तड़का लगा है l
दीवार में खिड़की अरसे से रहती आई है l यह बात आधुनिक हिंदी साहित्य के अधिकांश पाठकों को पहले से पता है l जिन्होंने यह बात किसी वजह से नहीं सुनी , उन्हें भी पता लग गया है कि दीवारों में बनी खिड़कियों की महती कृपा से बिना पढे लिखे ही लोग पढ़े लिखे जैसे बन जाते हैं l इन्हीं खिड़कियों के जरिये परीक्षा पर्चे में दिए सवालों के जवाब प्रकट होते हैं और उत्तर पुस्तिका पर जाकर खुद –ब –खुद चिपक जाते हैं जैसे फूलों पर तितलियाँ जा विराजती हैं l
कोई दीवार बनावट में चाहे जैसी भी हो लेकिन उसमें नकल करने और करवाने वालों के लिए सदैव एक अदद सीढ़ी और जिंदा उम्मीद रहती है l शिक्षा नकल की अक्ल में ही बसती और पनपती है l

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