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फूलमती और आता हुआ बजट

वैसे तो उसका नाम नसीबन था लेकिन अब वह फूलमती है।पहले भी वह पांच वक्ती नमाज़ी थी,अब भी है।पहले भी वह फूल बेचती थी ,अब भी उसी काम में दिनरात खटती है।फूल बेचते – बेचते वह कब नसीबन से फूलमती हो गई , इसका पता भी किसी को नहीं लगा।वह अपनी जर्जर हो चुकी खोली के बाहर बान की चारपाई पर रख गुलाब , गेंदे और चंपा के फूलों की दुकान सजाती है।फूलों की मालाएं गूंथते गूंथते वह उनके रूप रस और गंध में रच ,बस और बिंध चुकी है।इसके बावजूद फूलमती को फूलों से इतर देश दुनिया की अस्फुट जानकारी रहती है।यह अलग बात है कि   यह जानकारी अक्सर उसे बहुत उदास और बेचैन कर देती है।उसके मन में ऐसे सवाल पैदा कर देती है , जो अक्सर अनुत्तरित रह जाते हैं।मसलन उसे पता है कि बजट आ रहा है। पर आगमन के बावजूद वह चला कहाँ जाता है। ? उसकी खोली की नजदीक वाली   गुमटी पर सिगरेट की सप्लाई लेकर आने वाला सेल्समैन रामखिलावन की बाछें खिली हुई है।उसने ही बताया है कि बजट आ रहा है , अब सिगरेट के दाम बढ़ेंगे।हर साल ही बढ़ते हैं।बेतहाशा बढवार होती है। लेकिन हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाने वाले इससे हमेशा अप्रभावित रहते हैं।उसने सिगरेट के कुछ स्टाक

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