लगभग यू जैसा यू टर्न
यूटर्न को लेकर आजकल
राजनीतिक पटल पर गहन विमर्श चल रहा है । चिंतक
नाराज हैं कि लोग इतना अधिक यूटर्न ले रहे
हैं । यह बात कमोबेश सच भी है हम यूटर्न
समय से होकर गुजर रहे हैं । लेकिन इसमें
ऐसा कुछ भी नहीं जिसे पर इतनी अधिक माथापच्ची की जाये । यूटर्न आज की
सच्चाई है । लुटियन की नई दिल्ली के अलावा भी एक भरीपूरी दिल्ली और पूरा
मुल्क है जिसके कच्चे पक्के रास्ते इस कदर पेचीदा हैं कि यदि इस पर यूटर्न न
लिये जायें तो वे आपको धराशाही करके अपने वक्त से बाहर कर
देने में जरा भी विलम्ब नहीं करते ।
सब जानते हैं कि जो
यूटर्न ले पाने में समय रहते असफल रहते हैं वे अपने
अहंकार से लदे -फदे इतिहास की कंदराओं में चले जाते हैं या समय के डस्टबिन में फेंक दिए जाते हैं । जिन्हें वर्तमान में लौटना होता है उन्हें एक न एक दिन
यूटर्न लेना ही होता है । वैसे भी सीधी सपाट रास्ते आमतौर से गंतव्यों तक पहुँचने में नकामयाब ही
रहते हैं ।
यूटर्न लेना एक
श्रमसाध्य कला है ।राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए इसे साधना
अपरिहार्य है ।जिसे यूटर्न लेना नहीं आता वह राजधानी के सघन ट्रेफिक में सुबह से शाम तक सिर्फ दिल्ली दर्शन करता रह
जाता है पर वहां नहीं पहुँच पाता जहाँ उसे जाना होता है । दिल्ली में तो बच्चे भी
पैदा होने के बाद ककहरा सीखने से पहले यूटर्न लेना सीखते हैं । बिना यूटर्न के
जीवन गतिहीन हो जाता है ।
रोजमर्रा की जिंदगी
में आदमी चाहे अनचाहे बार बार यूटर्न लेता है ।घर में आदमी नाहक ही पत्नी पर लाल
पीला होता है और जब पत्नी आग़ बबूला होती है तो वह तुरंत यूटर्न लेकर एकदम सर्द सफ़ेद हो
जाता है ।दफ्तर में बॉस के चैम्बर अधीनस्थ सीना तान कर घुसता है और बॉस की डाट
फटकार के बाद अपनी कमर को यूटर्न देकर झुकी हुई कमान के साथ बाहर आता है ।गली के
नुक्कड़ पर खड़े शोहदे से या जिससे कर्ज़ लेकर
लौटाया न हो उस महाजन के कोपभाजन से बचना हो या बरसात में जल प्लावित रास्ते का
विकल्प खोजना हो या बिना हेलमेट पहने वाहन चलाते हुए ट्रेफिक के सिपाही के चालान से
बचना हो या फिर सदाशयता प्रदर्शन की कूटनीतिक वजह अथवा तकादा हो ,हर बार बार - बार
यूटर्न लेना ही होता है ।
यूटर्न ले लेकर ही
आदमी सही रास्ते को पाता आया है ।कोलंबस यूटर्न लेकर ही हिंदुस्तान को खोज पाया था
।जो यूटर्न लेना नहीं सीखते वे अपनी मंजिल
तलाशते हुए गुमनाम मुसाफिर बने रह जाते
हैं । वे कभी वास्कोडिगामा नहीं बन पाते ।कागज पर बने नक्शे हों या क़ुतुबनुमा या नाविकों के
दिशानिर्देशक यंत्र या फिर जीपीएस प्रणाली
,तभी कारगर होते हैं जब यूटर्न का सम्यक इस्तेमाल किया जाता है ।यूटर्न लेने से
बचने वाले अड़ियल घोड़े सवार को कभी विजयश्री नहीं दिला पाते । मानव इतिहास की
अधिकांश गौरव गाथाएं वस्तुतः यूटर्न का कीर्तिगान ही हैं । समस्त विश्व का कालजयी
साहित्य इसी यूटर्न के शिल्प से गढा जाता रहा है । राजनीति में तो इसके जरिये ही
सरकार का मानवीय चेहरा जनता के सामने उजागर होता है । उसकी ड्रेकुला वाली छवि परम
सौम्य सेंटा क्लाज़ में यूटर्न के कारण ही तब्दील होती आई है
। सरकार किसी चीज की कीमत 20 प्रतिशत बढाती है ,होहल्ला मचने पर यूटर्न लेती है और 4.5 प्रतिशत घटा देती है ,तब
उसकी जयजयकार होने लगती है ।नेता तभी कद्दावर बनता है जब वह यूटर्न लेने में
पारंगत हो जाता है ।लोकतंत्र में तो सरकारें
यूटर्न के जरिये ही बनती ,संवरती और स्थाईत्व को प्राप्त होती हैं ।यूटर्न तो सभी लेना चाहते हैं लेकिन इसकी महत्ता को सही मायने में वही जान पाते हैं जो उचित मोड़ पर
मुड़ने से चूक कर आगे बढ़ते चले जाते हैं ।
ध्यान रहे राजनीति
में यू टर्न लेते हुए उसकी आकृति शास्त्रीय ढंग से बने रोमन लिपि वाले यू की नहीं होती , लगभग यू जैसी होती
है ।
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