मन की बात का फैशन
आजकल मन की बात कहने
का फैशन चल रहा है l प्रायोजक
उपलब्ध हैं इसलिए बकायदा इसका उत्सव मनाया जा रहा है l पूरे मुल्क में मन की बात को
मन में न रख कर उसे सतह पर लाने की होड़ चल रही है l इस चक्कर में लोग अपने धुर विरोधी की तारीफ करके
झमेले में फंसते दिख रहे हैं l मन की बात जी का जंजाल बन कर संजाल पर वायरल हो
रही हैं l
तमाम लोग दिन भर मन भर बात कहने की फ़िराक में रहते हैं l कहा जाता है कि मन की बात खुल कर कहने का मौका
मिल जाये तो मन ही नहीं शरीर भी हल्का
हल्का –सा हो जाता है l जो मौका मिलने के
बावजूद चूक जाते हैं वे मन मसोस कर रह जाते हैं l
सरकार के पास सुविधा है
और चातुर्य भी कि वह जनता से अपने मन की बात शेयर करती रहे l जनता के सामने दुविधा है कि वह अपनी बात कैसे और
किससे कहे l मन की
बात कहने को मन तो करता है पर कहने में झिझक
आड़े आ जाती है l मसलन पेशावर की हृदयविदारक घटना के बाद मन हुआ कि
ज़ार ज़ार रोया जाये l जिम्मेदार कारकों
को जम कर कोसा जाये l लेकिन व्यावहारिकता का तकाज़ा रहा कि पराये मामले में नाहक टांग न अड़ाई जाये l कुछेक मोमबत्तियाँ रोशन कर अपने संवेदनशील होने
की नुमाईश कर ली जाये l सिडनी की आतंकी घटना की पुरज़ोर निंदा करने को मन हुआ लेकिन प्रगतिशीलता का आग्रह रहा कि इस मसले पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाये l धार्मिक उन्माद के प्रति गुस्से से भरा मन इसलिए
अपनी बात नहीं कह पाया क्योंकि वह दहशत की
कालिमा से इतर कोई रंग देख पाने में
असमर्थ रहा l ’सेकुलर’
दिखने के लिए सोच और अभिव्यक्ति के स्तर पर न्यूनतम दोरंगा होना ज़रूरी होता है l
मन की बात की आड़ में
दुबक कर जब कुछ कहा जाता है वह मन की बात
न होकर अकसर प्रपंच का ‘इनडोर गेम’ होता
है l मन के भीतर ही हमेशा खुराफातों के पुलाव पकते हैं l इसकी कोटर में स्वार्थ के चालाक उल्लू पलते हैं और यहीं विचारों के चमगादड़ उलटे लटकते हैं l
मन की ऐसी बात को खुलेआम कहना इतना आसान कहाँ है जो
पोलिटिकली करेक्ट भी हो ! मन की अराजनीतिक
बात विपक्षी की तारीफ बन जाये तो राजनीतिक पटल पर झंझट खड़ा हो जाता है l तोला भर की जुबान से निकली बात मन भर की बात बन
जाती है l
@डेली न्यूज़ जयपुर के २४ जनवरी १५ के अंक में प्रकशित
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