सेंसरबोर्ड का जाना आना
सेंसर बोर्ड था lसेंसर बोर्ड है lसेंसर बोर्ड अमर है l वह होता है तो मस्तराम होती है lवह नहीं हो तो भी सारे काम चलते हैं l जुम्मे के जुम्मे फ़िल्में आती हैं l कुछ कमाई का कीर्तिमान स्थापित करती हैं l अनेक औंधे मुहँ गिरती रहें l लेकिन सेंसर बोर्ड होता है तो बात कुछ और होती है l फिल्म शुरू होने से पहले सेंसर आता है ,अपना
प्रमाणपत्र दिखाता है lफिल्म शुरू होते ही नायिका आती है और वह अपनी देह को वस्त्रों से
मुक्त करती है lनायक उसके मुहँ से मुहँ चिपका कर चिपकाऊ ब्रांड
का प्रचार करता है lनायक - नायिका सेंसर बोर्ड को अंगूठा
दिखाते हैं l दर्शक भावातिरेक से सीटियाँ बजाते हैं l
ईश्वरीय सन्देश लेकर एक देवतुल्यजी आये तो सेंसर ने उन्हें टोका कि आप आसमानी हदें फलांग कर यहाँ क्यों आये
? देवतुल्य ने कहा कि उन्हें भक्तों ने
बुलाया है l सेंसर बोर्ड ने कहा कि भक्त
आजकल अतिव्यस्त हैं उनके पास एक्स्ट्रा
भक्ताई के लिए वक्त नहीं l ओरिजनल ईश्वर भी आ जाएँ तो भी उनकी अगवानी के
लिए उ फुर्सत नहीं l भक्त आजकल अपनी आस्थाओं की खातिर जुबानी
जंग लड़ रहे हैं lवे सोशल मीडिया पर गाली गलौच का दोस्ताना मैच खेल
रहे हैं l
बीच में खबर आई थी कि सेंसर रूठ कर कहीं चला गया या गई है lवह मायके गई या ससुराल ,किसी को पता नहीं lसम्पूर्ण आज़ादी के दीवानों ने तब कहा –वाह! लेकिन सयानों ने कहा –आह ! उनका कहना था कि सेंसर बोर्ड नहीं होगा तो उसे
धता बता कर रुपहले परदे के बेशकीमती सितारे अपने शारीरिक सौष्ठव की नुमाईश कैसे
करेंगे ? जब कोई रोकने टोकने वाला न हो तब खेल में क्या मज़ा ? जिस बगीचे में माली
तैनात न हो उसके यहाँ से फल फूल चुरा ले जाने में कैसा कौशल ? यदि कक्षा में
मास्टर या मास्टरनी नहीं हो तब क्लास बंक करने में क्या आनंद ? इश्क तभी सनसनीखेज़
होता है जब प्रेमिका का भाई बाहुबली हो l
सेंसर बोर्ड गया तो चला ही गया क्योंकि
उसकी उपयोगिता खत्म हो गयी थी l बाज़ारवाद के ज़माने
में आदमी फालतू बड़ी जल्दी होता है l बाज़ार सिर्फ पालतू को बर्दाश्त करता है l फालतू चीजें तुरंत ‘रिप्लेस’ हो जाती हैं l उसकी जगह हिलती हुई
दुमें आ जाती हैं l
नया सेंसर बोर्ड आ गया है lअभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आसन्न खतरा टल गया है
l
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें