अब मरना आसान हुआ !


ख़ुदकुशी करने की योजना बना रहे लोगों के लिए  इससे बड़ी खुशखबरी क्या हो सकती है कि अब मरने की कोशिश करना अपराध नहीं रहा  lअब जो चाहे जब चाहे स्वेच्छा से मरने का पूरा प्रयास कर  सकता है lवैसे भी अधिकतर लोग यही मानते आये हैं कि वे  अरसे से डेली बेसिस पर मर मर कर जीते रहे हैं l
यह सही है कि मौत जब आती है तब आ ही जाती है पर किसी के बुलाने ,पुकारने या टेरने से हरगिज नहीं आती lग़ालिब ने कह रखा है –मौत का एक दिन मुअय्यन है ,नींद क्यों रात भर नहीं आती lइस शेर से यह सवाल भी उठता है कि जो घोड़े बेचकर लम्बी तान के निश्चिंत सोते हैं क्या उनके लिए मरने का दिन पूर्वनिर्धारित  नहीं होता ? मौत किसी को नहीं बख्शती ,चाहे वह राजा हो रंक ,दुराचारी हो या पुजारी या फिर कुंभकर्ण हो या अनिंद्रा रोगी कोई लल्लू जगधर l
आम आदमी के लिए इस मुल्क में  जीना कभी आसान नहीं रहा lउसे पग पग पर तमाम तरीके की दुश्वारियों झेलनी होती  है lबिजली का बिल जमा करना हो या नया कनेक्शन लेना हो , गैस कनेक्शन के लिए केवाईसी जमा करनी हो या बच्चे का स्कूल में दाखिला करवाना हो या  या फिर किसी मामले में थाने में रपट लिखानी हो ,मसला कुछ भी हो ,उससे साफ़ साफ़ कहा जाता है कि काम कराना हो  तो जेब से दाम निकालो या फिर जाओ मरो l
एक समय था जब कोई युवक किसी युवती की ओर प्यार की पींग बढाता है तो वह कहती है ,चलो हटो ,किसी ने देख लिया तो मर जाउंगी l उन दिनों ब्याहता अपने पति तक से लगभग ऐसी ही बात करती पाई जाती थीं l
राजनीति में सपने और सिद्धांत बेमौत मरते हैं lयहाँ पद ,प्रतिष्ठा और सत्ता के लिए नेता कुछ भी कर सकते हैं lवह जीते जी मर सकते हैं और मर मर कर जी  सकते हैं lइनके मरने और जीने में खास फर्क नहीं होता lवे  नैतिकता को तिलांजलि दे चुल्लू भर पानी में डूबते हैं तो अगले ही क्षण सुख सुविधाओं के तरणताल में प्रकट हो  जाते हैं l
रोजमर्रा की जिंदगी को सरल करना तो किसी के वश में नहीं l चलो अच्छा हुआ , सरकार जीना तो आसान न कर पायी पर कम से कम उसने मरना तो सरल किया l






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