हिंदी दिवस नहीं इंडी दिवस
हिंदी दिवस आ रहा है ।उसके आने की सुगबुगाहट दफ्तर के हिंदी अधिकारी की मेज के इर्दगिर्द पूरी शिद्दत से महसूस होने लगी है । इस मौके पर बंटने वाले पुरस्कारों के कोटेशन वाली लालफीते वाली फाइलें तेजी से इधर उधर हो रही हैं ।इस अवसर पर लगने वाले पोस्टर बैनर के प्रूफ न मिलने के कारण अधिकारी जी तनाव में हैं और इसी की वजह से अपने मातहतों को अंग्रेजी में कस कर डाट पिला चुके हैं । वह इस कदर तनाव में हैं कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को हरियाणवी में और अपनी स्टेनो को पंजाबी में ताकीद देते देखे गए हैं ।इसके बावजूद छोटे बड़े बाबू , जो पूरे साल पूर्ण मनोयोग से हिंदी की खिल्ली उड़ाते हैं ,इस दिन को लेकर कुछ इस तरह उत्साहित हैं जैसे सिंथेटिक दूध का कारोबार करने वाले नवरात्र में भगवती जगरण के लिए 501 रुपये की रसीद कटवा कर होते हैं ।ऐसा मौका पूरे साल में एक बार आता है जब मन हिंदी हिंदी हो जाता है । हिंदी दिवस पर हिंदी की तारीफ में कुछ इस अंदाज़ में की जाती है जैसे किसी हुतात्मा की शोकसभा में प्रखर वक्ता अपने शोकाकुल बयान युगों युगों से पढ़ते आये हैं ।
हिंदी दिवस पर भाई लोग हिंदी को लेकर ऐसे बेचैन हो उठते हैं जैसे तीस पार की अनब्याही कन्या का पिता मैट्रिमोनियल कॉलम को देखते हो जाता है । जैसे हम किसी आत्मीयजन की पुण्यतिथि पर मनहूसियत को अनायास ही अपने चेहरे पर लपेट लेते हैं । जैसे हिंदी भाषा न हुई आक्सीजन का सिलेंडर हो कि वक्त रहते मरीज को न मिली तो वह असमय काल कवलित हो जायेगा । ।इस दिन हिंदी को लेकर न जाने कैसे कैसे ख्याल आते हैं ,न जाने कैसी कैसी बात कहने सुनने में आती हैं कि कुछ मन के भीतर कैंडिल की उजास हो जाती है । जी करता है कि हिंदी दिवस की पूर्व संध्या को कैंडिल मार्च का आयोजन जोरशोर से हो । सब लोग हाथ में मोमबत्ती थामे हिंदी के पक्ष में अलख जगाने सड़कों पर निकलें । कैंडिल मार्च में जब गर्म मोम पिघल कर हथेली से होता हुआ कलाई पर फिसलेगा तो लोगों को लगेगा कि वे हिंदी के लिए तकलीफ उठाने का प्रथम हाथ तजुर्बा ( फर्स्टहैंड एक्सपीरियंस ) प्राप्त कर रहे हैं ।लगे हाथ कैंडिल लाईट डिनर आयोजित कर हम हिंदी को आधुनिकतावादी फैस्टिव टच भी दे पाएंगे ।
समय बदल रहा है इसलिए जरूरी यह भी है कि हिंदी और उसके दिवस को नया लुक और कलेवर दिया जाये ।हिंदी को अंग्रेजी लिबास पहना दिया जाये तो इसके वर्ड लैंग्वेज बनने के रास्ते खुल जायेंगे ।इस मौके पर अहद लिया जाये कि उसी को हिंदी प्रेमी मना जायेगा जो हिंदी में न्यूनतम साठ प्रतिशत अंग्रेजी फ्रेंच जर्मन और सपेनिश शब्दों का इस्तेमाल करेगा ।यह प्रतिशत जितना अधिक होगा उतना ही हिंदी का विकास होगा ।हिंदी को इंडी कहने से इसकी वैश्विक स्तर पर सर्वस्वीकार्य छवि बन सकती है । हिंदी जब इंडी हो जायेगी तो इससे सेक्युलरिज्म की अवधारणा बलवती होगी ।तब यह एक सम्प्रदाय या धर्म की भाषा न होकर इंडिया की कम्प्लीट भाषा हो जायेगी । तब बड़े गर्व के साथ इसे इंडी इंडिया कहा जा सकेगा । हिंदी से इंडी होकर यह बाजार की डिमांड और मानकों के अनुरूप हो जायेगी ।तभी हिंदी के लेखकों को कंज्यूमर मार्केट में स्थान मिलेगा और फटीचर होने के स्थाई भाव से मुक्ति ।
आइये ,इस बार हम सब मिल कर पीपीपी की तर्ज़ पर हिंदी को इंडी बना डालें !
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