बैन लगा कर हटाना बड़ी बात है !
मैगी
से प्रतिबंध हटा। वह इसलिए हटा क्योंकि
लगा था। इस बीच पॉर्न पर पाबंदी लगी थी। वह अंततः नहीं रही। जो जन्म लेता है वो एक
दिन मरता भी है। यह आध्यात्मिक सच है। वैज्ञानिक सच इस सत्य के विपरीत है। विज्ञान
के हिसाब से द्रव्य अविनाशी है। वह न पैदा होता है न मिटता है ,बस रूपांतरित होता है। लगभग यही बात
भगवत गीता में कही गई है। लेकिन गीता साइंस की किताब नहीं है। वह धार्मिक पुस्तक
है। भगवान कृष्ण विज्ञानी नहीं ईश्वर थे। उनके नाम कोई डिग्री या रिसर्च पेपर नहीं
था। वह कभी किसी लेबोट्री में नहीं गए। उनके पास अपनी बातों का पक्ष प्रबल करने के
लिए ग्रंथों की कोई सूची नहीं थी। तब अहम सवाल यह है कि क्या बैन या पाबंदी को द्रव्य
की श्रेणी में रखा जाये या नहीं ? वैसे तो ऐसे तमाम प्रकरणों
में किसी न किसी प्रकार द्रव्य की उपस्थिति रहती है। बैन के लगने और उठने से ही सरकारी
महकमों और अदालतों का मार्केट फ्रेंडली चेहरा सामने आता है। यह अलग बात है कि
महकमों की ओट में कहीं न कहीं अकसर सरकार और उसके सरोकार होते हैं।
जब तक
मैगी थी तो जिंदगी कितनी आसान और पुरसुकून थी। बस दो मिनट में ममत्व और मैगी प्रकट
हो जाती थी। पलक झपकते ही दुलार की मसालेदार रेसिपी खाने की मेज पर सज जाती थी। जब
तक पॉर्न की सहज उपलब्धता थी तब तक जीवन रसमय था। उस पर पाबंदी आयद हुई तो पता चला
कि जीवन किस कदर दुरूह और तमाम तरह की आशंकाओं से भरा हुआ है। लोगों के मन में तरह
तरह के ख्याल आने लगे कि यह सरकार तो बड़ी दुष्ट है। आज कम्प्युटर तक घुसपैठ कर रही
है। कल वह बैडरूम में क्लोज
सर्किट कैमरा या पीपिंग टॉम की मौजूदगी बाध्यकारी कर देगी। सरकार ने आननफानन में
अपना आदेश वापस लिया। उसे अन्तोत्ग्त्वा ऐसा करना ही था। सही समय पर
करना था। मौका ताड़ कर करना था। राजनीति में टाइमिंग का पृथक शास्त्र है। इस यूटर्न से बात साफ़ हुई कि ये सरकार भले ही
निकम्मी हो ,पर है उदारमना। इससे सरकार की साख का चाहे जो
हुआ हो पर उसकी छवि तो उज्ज्वल हुई। इमेज बड़ी चीज है। यह बड़ी मुश्किल से बनती,
संवरती और निखरती है। साख बिगड़ जाये तो येनकेनप्रकारेण सुधर जाती है। छवि बनाने
में मिलियन डॉलर का निवेश करना पड़ता है।
अब
पॉर्न भी है। मैगी के पुनरागमन की संभावना है। सदन में सत्तापक्ष का बहुमत है।
विपक्ष के फेफड़ों में चीखने की ताकत और भुजाओं में बल है। उनके नेता के हाथ में हिंदी
में बोलने लायक रोमन में लिखे टेक्स्ट की पर्ची हैं। नाक की मुडेर पर बैठा सरकार
के प्रति गुस्सा है और जमी जमाई दुकान उखड़ जाने का क्षोभ है। दोनों का डैडली
कम्बिनेशन है। जीएसटी के लिए लघु सत्र आहूत करने की सुगबुगाहट है। एक दूसरे की
पोलखोल की देशव्यापी तैयारी है। मंगल पर सुंदर महिला की मौजूदगी की नासा ब्रांड
खबर है। चाँद के पार जीवन के चिन्ह मिलने की अस्फुट जानकारी है। सुदूर मुल्कों में
रह रहे देशभक्तों के जखीरे मिलने की खुशखबरी है। इनके जरिये देशप्रेम की भावना की स्वदेशी
मार्केट में कमी की भरपाई होने की उम्मीद है।
फिलवक्त
सरकार अवांतर प्रसंगों में बिजी है। जब उसे मौका मिलेगा तो वह प्याज के सेवन पर
पाबंदी लगाने जैसा कुछ करेगी। जब इसके खिलाफ आवाज उठेगी तो वह आंशिक बैन हटा
देगी। प्याज को कच्चा खाने पर पाबंदी लगी रहेगी।
इस
बीच प्याज के दाम घटेंगे तो लोगों को कहना पड़ेगा कि अजी कहो कुछ भी। यह सरकार तो
वाकई बहुत यूजर फ्रेंडली है।
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