उसके न होने के बावजूद उसका होना

वह चाल- ढाल, शक्ल-
सूरत और तौर तरीके से कसाब जैसा लगता है। अब वह आने वाले दिनों में उसकी तरह का ही
लगता रहेगा। हो सकता है कि वह एक दिन जेल में बिरियानी खाने की जिद करे। उसकी
फरमाइश पूरी भले ही न हो लेकिन इस बात पर बहस जरूर होगी कि हर आतंकी बिरियानी ही
क्यों खाता है। क्या बिरियानी में आतंक का केसर घुला होता है ? वह हरेभरे सलाद की बात क्यों नहीं करता ? क्या
आतंकवाद का कोई पृथक कलर कोड नहीं होता ? यह कैसा आतंकवाद है ? जिसका अपना कोई रंग
नहीं है।
वह पकड़ लिया गया है
तो जाहिर है कि उससे पूछताछ भी जरूर होगी। सघन जाँच पड़ताल होगी। वह जांच
एजेन्सियों को तरह -तरह की कहानी सुनायेगा। जिनमें से कुछ किस्से मनगढंत होंगे।
अकसर हार्डकोर क्रिमनल शानदार किस्सागो होते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि प्रत्येक
बढ़िया किस्सागो दुर्दांत अपराधी भी हो। इससे कुछ साबित नहीं होता। इससे मीडिया वालों को टीआरपी बढ़ाने के लिए
कच्चा माल मिलता है। आंतकियों के कथोकथन बड़े चाव से सुने पढ़े जाते हैं।
कसाब जब तक जिंदा रहा तब तक हमारी भावनाओं के
झुनझुने को बजाता रहा। वह देशभक्ति की बॉलकनी में टंगा विंड चाइम था। हवा के हल्के
से झोंके से हौले हौले टनटनाता हुआ।
कसाब नावेद का रूप
धर टंगने के लिए फिर आ गया है।
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