अस्सी पार की प्याज


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प्याज अस्सी पर पहुँच गई , हर तरफ चुप्पी है। बनारस के अस्सी घाट पर भरीपूरी फिल्म बन गई, चहुँ ओर सन्नाटा है। वक्त घड़ियों के भीतर टिक टिक करता चल रहा है ,फिर भी ख़ामोशी है। जिन्हें पैकेज मिलना तय था ,मिल गया। कहीं कोई हर्षोल्लास नहीं है। सोना गिर कर फिर चढ़ गया ,कोई सुगबुगाहट नहीं। सातवें पे कमीशन की प्रस्तावित रिपोर्ट के बारे में डरावनी खबरें आ रही हैं ,बाबू लोग इसके बावजूद अपने भाग्य या सरकार को नहीं कोस रहे है।  आबूधाबी में मंदिर बनेगा ,लोगों ने इस खबर को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया है। पेट्रोल और डीजल के दाम कभी घटते हैं तो कभी बढ़ते हैं। कहीं कोई हाहाकार या जयकार नहीं। दो कान होने का महत्व अब समझ आया कि वे  होते ही इसलिए है कि बात को एक से सुनकर दूसरे से अनसुना कर दिया जाये।
संसद का सत्रावसान हो चुका है।  सब अपने अपने काम पर लौट गए हैं।  नेता चीख पुकार से थके गले के साथ सुस्ता रहे हैं।  वे अपने चुनाव क्षेत्र में खुद के गले में मालाएं डलवा रहे हैं।  फूलों के सुगन्धित स्पर्श से रोग जल्द मिटेगा ,ऐसा उनका अनुमान है।  राजनीति से उपजे रोग अनुमानी इलाज से ठीक होते हैं।  उनसठ लोग साठ करोड़ देकर जेल प्रवास से बच गए।  धन की महिमा अपरम्पार है।  पैसा हाथ का मैल नहीं ,हैंडवाश है। इसके जरिये रक्तरंजित हाथ बड़ी आसानी से धुल जाते हैं। धुल कर ताजा खुली डेटाल की बोतल की तरह महकते हैं।
प्याज़ के साथ इसकी गंध का संकट जुड़ा है। इससे सब्जी जायकेदार बनती है। कच्ची प्याज कुतरने का अलग आनंद है। इस कतरते हुए आँखें पानी से लबालब हो जाती हैं। इतनी पनीली हो जाती हैं कि बच्चे चाहें तो इसमें कागज की नाव तैरा सकते हैं।  इसकी कीमत बढ़ती है तो लोगों को इसकी याद सताती है।  इसे डाउनमार्केट सब्जी समझने वाले इसकी ओर आकर्षित होते हैं।  उनके लिए यह स्टेट्स सिम्बल बन जाती है।  वे इसकी गंध को अपने मनपसंद डियो से बेहतर आंकने लगते हैं।
प्याज़ के प्रति आसक्ति रखने वाले भी उसे खा पाने में असमर्थ रह जाने के बावजूद शांत हैं।  उन्हें पता है कि सावन का महीना चल रहा है।  इस माह में प्याज तामसिक होती है।  इसका सेवन निषेध है। लेकिन जो इसके महंगा होने पर इसे खाना अफोर्ड कर पा रहे हैं उनके लिए यह फ़कत अगस्त का महीना है। ये लोग वो हैं जिनका कहना और मानना है कि संडे हो या मंडे खूब खाओ अंडे। ये बिंदास लोग हैं।  खाने पीने के मामले में कतई बेतकल्लुफ।  इनकी जिंदगी में सावन सिर्फ कभी कभार गाने बजाने में आता है।  ये उदारमना लोग सब्जी वाले से सब्जी की कीमत पर विमर्श नहीं करते।  मोलभाव नहीं करते। इनके लिए तो सब्जी वाले द्वारा मुफ्त का धनिया, पुदीना, हरीमिर्च और  सलाम का मिलना ही काफी है। इज्जत बड़ी चीज है।  
प्याज़ प्यार तो नहीं है फिर भी प्यार से कुछ कम भी नहीं। प्यार के मामले में ख़ामोशी की अपनी डिप्लोमेसी होती है।  इसी तरह प्याज को लेकर अधिक शोरगुल न करने की परिपाटी है। प्यार और प्याज हमारी कामनाओं के गोपनीय ठिकाने हैं। इनको लेकर सार्वजनिक प्रदर्शन अशालीन माना जाता है। 
प्याज अस्सी पार की हुई तो होने दो। कल हो सकता है सैंकड़े को छू ले। अस्सी पार की प्याज़ हो या प्यार ,होती है कमाल की चीज। 
इसे भक्तिभाव से जीवन के अन्य उतार चढ़ावों की तरह अपलक निखारते रहो।


    

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