स्ट्रीट -स्मार्ट कीट पतंगे और उनकी स्मार्टस्मार्टनेस

आदमी को स्मार्ट बनने के लिए बड़े जतन करने पड़ रहे  हैं।  बनने से अधिक दिखना महत्वपूर्ण हो चला है। जेब के वजन का स्मार्टनैस से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। जेब में  कीर्ति की भागीरथी का उद्गम होता है। इसके बावजूद स्ट्रीट समार्ट बनने की होड़ में वह ‘मिडियोकर’ समझे जाने वाले कीट पतंगों से निरंतर पिछड़ता जा रहा है। आदमी कीटनाशक बनाता है ,कीट उसकी काट की तरकीब ढूंढ लाते हैं।  वह उसे पकड़ने  के लिए उसके पीछे भागता है ,पतंगे तुरंत हवा हवाई हो जाते हैं। कीट पतंगों के सर्वनाश के लिए लगभग सारे उपाय व्यर्थ हो गए हैं। अब तो मच्छरों ने गुन गुन तक करना बंद कर दिया है। वे बड़ी ख़ामोशी से कान पर लैंड करते हैं । डंक चुभाते हैं। रक्तपान का लुत्फ़ लेते  हैं।  फुर्र हो जाते हैं।  उन्होंने  गुपचुप अपना काम करते रहने की तकनीक विकसित कर ली है।
कुछ समय पूर्व बैटरी ऑपरेटिड रैकेट बाजार में आया था। टेनिस या बैडमिंटन के रैकेट सरीखा।  इससे खेल ही खेल में सानिया मिर्ज़ा या साइना नेहवाल बनने की गलतफहमी का रियाज़ करते हुए इधर उधर मंडरा रहे दुष्ट  मच्छरों को सरलता से मारा जा सकता था। यह मक्खी मारने वाले मुहावरे को साकार करने के लिए बना परिष्कृत वैज्ञानिक समाधान था। लोगों को घर बैठ कर मच्छर  मारते हुए भी यही लगता  रहता है  कि वे मलेरिया मुक्त भारत के निर्माण में अपना अतुलनीय योगदान दे रहे हैं।  वैसे भी कुछ होने के मुकाबले उसका लगना बड़ी बात होती है।
आदमी का कीट पतंगों से सनातन बैरभाव  रहा है। जब से एक फ़िल्मी गीत में मच्छर को नपुंसकता का कारक निरुपित किया गया है ,तब से तो मच्छरों के खिलाफ उसने सीधी जंग छेड़ दी है। मच्छर भी अपनी जान पर मंडरा रहे इस खतरे से परिचित हैं। अब पता चला है कि वे उस मारक रैकेट को देखते ही अन्तर्ध्यान हो जाते हैं और इधर उधर छुप जाते हैं। हर घर और फ़्लैट में अमूमन टाण्ड या दुछत्ती बनती ही इसलिए है ताकि वे वहाँ जाकर सरलता से शरण ले सकें। छतों या बालकनी में पानी भरे पात्र इसीलिए रखे जाते हैं ताकि मच्छर आराम से अपनी आबादी बढ़ा सकें। वास्तव में ये स्थान और जलभरे पात्र  हमारी सदाशयता का नमूने भी हैं।  इससे हमारी समस्त ब्रह्मांड के प्राणीमात्र के प्रति दयालुता और उदारता का पता चलता है।  
यह बात तय है कि कीटपतंगे अब पहले जैसे निरीह नहीं रहे। शमा की सुंदरता पर जान गंवाने वाले परवानों का अस्तित्व केवल शेरोशायरी के पन्नों में सिमट कर रह गया है। वे आदमी के सानिध्य में रहते रहते  न सिर्फ  खतरे को भांपना  वरन अपने बचाव के तरीके सीख गए हैं।  
वे अब वक्त जरूरत के हिसाब से मुखौटे धारण करने की कला सीखने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। उनको पता लग गया है कि बाह्य आवरण से अंतस में उजास होती है। समयानुकूल भेस से बचाव के साथ ही साथ कीर्ति चतुर्दिक होती है।
वाकई अब कीट पतंगे पहले जैसे मूढ़मति नहीं रह गए हैं। मच्छर तो अब आदमी की तरह चतुर सुजान बन गए हैं। वे आदमी बनने के काफी करीब पहुँच गए हैं।




  




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