शोमैन,शोकेस और शोबाजी उर्फ शोशेबाज़ी
राजनीति अब पहले
जैसी स्याह सफ़ेद नहीं रह गई है। वह मल्टीकलर हो चली
है। पुराने ज़माने की भाषा में बोले तो ईस्टमैन कलर। अब इसके शोकेस में बहुरंगी सामान
और सरोकार रखे दिखते हैं। पहले शोमैन सिर्फ रुपहले पर्दे की दुनिया तक सीमित थे।
अब वे हर जगह हैं । राजनीति में हर दल के पास अमूमन अपना शोमैन है। जिनके पास नहीं
है वे उसे शिद्दत से खोजने में लगे हैं। अब चुनाव जीतने के लिए नारों ,उलाहनों
वादों ,पोस्टर, विज्ञापन ,ज्ञापन और मैनिफैस्टो से काम नहीं चलता। बिना सम्यक
शोबाजी के सारे प्रयास अकारथ हो जाते हैं।
वर्तमान में सारा जोर इस बात को लेकर होता है कि किसकी पोशाक की ‘चमकार’ दूसरे के
पहनावे से अधिक है। बाहरी आवरण से अंदरूनी
गुणवत्ता की शिनाख्त होती है।
जब भी किसी राज्य
में चुनाव नज़दीक आते हैं तमाम प्रकार के शोशेबाज़ ब्रांड डिटरेजेंट बाज़ार में आ जाते हैं। शो बिजनस में
राजनीतिक मंतव्यों से अधिक कीमियागरी महत्वपूर्ण होती है। सोना वही ,जिसमें चमक हो।
सिर्फ हो ही नहीं वरन सबको दिखे भी। होने के मुकाबले दिखना बड़ी चीज होती है।
शुद्धता या खरेपन को कोई नहीं पूछता। जो चमकता है वह खोटा होने के बावजूद मार्केट
में चल जाता है। कांतिहीन हुआ तो ऐसे ही पड़ा रह जाता है।
बाज़ार ने पूरी सोच
को बदल डाला है। वह हर जगह है। उसके होने को कोई नकार नहीं सकता। वह प्यार में भले
न हो पर उसके इज़हार में बाकायदा है। उसकी मौजूदगी भले ही आभासी हो लेकिन उसकी
पूरी आनबान शान वास्तविक है। गर्म रेत पर फुलाए गए मक्के के दानों को तब तक कोई
नहीं पूछता जब तक वो किसी मॉल के स्टॉल पर पॉपकॉर्न बनकर कांच के मर्तबान में फुदकते
हुए न दिखायी दे । दिखावे से सब चलता है। दिखने से हर चीज बिक जाती है। शोकेस की
पारदर्शिता का अपना तिलस्म होता है। बाज़ार ऐसी ही टोटकों से चलता है। सिर्फ चलता
ही नहीं सरपट दौड़ने लगता है।
राजनीति के घाट पर
अब ‘संतन’ की भीड़ यूँही नहीं जुटती। उसे जुटाने
के लिए बड़े जतन करने पड़ते है।उसके लिए पूरी व्यवस्था और जुगाड़ करना पड़ता है। तम्बू
तानने पड़ते है।पंडाल सजाने पड़ते हैं। अपने मंतव्यों की सलीके से नुमाईश करके
गोलबंद होना पड़ता है। जनता को बरगलाना पड़ता है। सब्ज बाग दिखाने होते हैं। मरुस्थल
में बागवानी की बात करनी पडती है। सभा स्थल पर उपस्थित श्रोताओं को ‘जैकारे’ के
लिए बार -बार उकसाना पड़ता है। मीडिया को साधना होता है कि वे सही वक्त पर अपने
कैमरे वाइड एंगिल पर पैन करें ताकि जनसैलाब उमड़ता हुआ दिखाई दे। भीड़ जुटे या न
जुटे पर उसकी मौजूदगी ठीक से दिखे जरूर।
प्रेस रिलीज के जरिये दस बीस लाख लोगों की उपस्थिति का आंकड़ा देना होता है। व्यापक
जनसमर्थन का दावा करना होता है। हर काम पूरी मुस्तैदी से करना पड़ता है।
राजनीति में शोमैन
,शोकेस और शोबाजी की वही भूमिका है जैसे छोले भटूरे को लज़ीज़ बनाने के लिए सिरके
वाली प्याज ,हरी चटनी और गर्म मसाले की।
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