स्मार्टनेस की कतार और मेरा शहर
देर रात खबर मिली कि
मेरा शहर स्मार्ट सिटी बनने की कतार में है। जब तक कोई कतार में होता है तब तक बड़ी
उम्मीद रहती है। कुछ होने जाने के मुकाबले आस का पास मिलते रहना जरूरी होता है
जैसे हॉकी के सेंटरफारवर्ड को गोल के
मुहाने पर गेंद का मिल जाना। तब दो ही बात हो सकती हैं या तो खिलाड़ी ड्रिबल करके
गेंद गोलपोस्ट के भीतर सरका दे या ऐसा करने में
चूक जाये। बिना कुछ करे धरे इधर उधर मटरगश्ती करने के मुकाबले ये दोनों
स्थितियां बेहतर हैं। पर ऐसा हमेशा होता नहीं। जिंदगी अप्रत्याशित ढंग से घटी
घटनाओं के जरिये चलती है। स्मार्टनेस बामुश्किल तमाम नसीब होती है।
सुबह होते ही पता
लगा कि मेरा शहर स्मार्टनेस मिलने की होड़ से बाहर हो गया है, वह कतार में था पर अब
नहीं है। उसे
धकिया कर हाशिए पर डाल दिया गया है। अभी भी मेरे शहर के पास मौका है कि वह खुद को
स्मार्ट बनने के लिए पात्र साबित करे और पुन: कतार में आ खड़ा हो। स्ट्रीट समार्ट लोग अच्छी तरह जानते हैं कि कतार
के चक्रव्यूह को कैसे भेदा जा सकता है। वह इस भेदन की कला को अरसे से जानते हैं। वे जन्मने अभिमन्यु के मानस पुत्र होते हैं। एक वक्त वो भी था जब नई रिलीज होने वाली फिल्म
का फर्स्ट -डे फर्स्ट -शो देखने के लिए शहर भर के जाबांज टिकट खिड़की पर जुटते थे। भयंकर धक्कामुक्की के बीच कोई विरला अपने के साथियों कि
हाथेली के जरिये जमीन से ऊपर उठता और आकाशमार्ग से उड़ता हुआ अपने हाथ को छ: इंच बाई छ: इंच की खिड़की के भीतर पहुंचा देता। असल स्मार्टनेस तो यह हुआ करती थी।
स्मार्टनैस की अनेक
किस्में होती हैं। कुछ
पैदाइशी स्मार्ट होते हैं ,देशज भाषा में कहें तो घुन्ने। कुछ सिर्फ स्मार्ट होते हैं ,दिखने में एकदम
चाकचौबंद ,वैसे चौपट। एक
किस्म वो भी है ,जिसे लोग ओवरस्मार्ट कहते-समझते हैं। घर से पिता के बटुए से रुपये उड़ा लाए और साथियों
को यह कर दावत दे दी कि लॉटरी लगी है। मोहल्ले की लड़की किसी के साथ भाग गई और पूरे
इलाके में अपने लड़की से अतरंग संबंध को खुलासा करते घूमते रहे और शक में धरे गए। शक की सुईं हमेशा ओवर स्मार्ट लोगों पर ही जाकर
टिकती है। लेकिन
सबसे अधिक शातिर और उपयोगी होते हैं स्ट्रीट स्मार्ट लोग,जो शराब भी पीते हैं तो
स्ट्रा लगाकर। प्रणय
निवेदन करते हैं तो सिर पर हैलमेट ओढ़ कर। सडक चलती लड़की को फब्ती कसते हैं तो पैर की हवाई
चप्पल हाथों में पहन कर ताकि जरूरत पड़ने पर सरपट दौड़ लगा कर उड़ान भर सके।
अधिकारिक सूचना यह
है कि मेरा शहर स्मार्ट सिटी बनने की कतार से बाहर खड़ा सोच रहा है कि उसे किस
किस्म का स्मार्ट बनना है। उद्देश्य क्लीयर हो तो वह कतार में लगने की
कवायद फिर शुरू करे। उसके
पास हर हालात से निबटने के लिए पुख्ता योजना है। सोर्स, सिफारिश, तिकड़म और पूजा अनुष्ठान वाले
लोग उसे पुन: कतार में लाने के लिए जी जान लगाने को तैयार हैं।
वैसे तो मेरा शहर
पहले से ही खासा स्मार्ट है। यहाँ की सडकें टूटी फूटी हैं ,जिस पर स्मार्ट
लोग ही वाहन दौड़ा पाते हैं। कानून व्यवस्था लचर है पर गुंडों से आँख बचाकर
निकल जाने की तकनीक यहाँ के बाशिंदे जानते हैं। बिजली अक्सर गुल रहती है तो बहते पसीने और
मच्छरों से खुद को बचा कर नींद का लुत्फ़ लेना मेरा शहर सीख चुका है। इसके बावजूद स्मार्टनेस का कोई तमगा मिलता है तो
मिल जाए, इसमें हर्ज ही क्या है।
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