इसरो के सेटेलाईट और एबोनाईट के पुराने रिकार्ड


इसरो ने फिर रिकार्ड तोड़ दिया।एबोनाईट के रिकार्ड वाला पुराना समय होता तो यह सुनते ही इसरार की अम्मी ने पहले तो अपने शैतान बच्चे को कूटना था।इसके बाद इसरार के अब्बा को कोसना था कि इत्ते बड़े हो लिए लेकिन इनका  गानों -शानों को सुनने का शौक न गया।घर भर को इन मुए रिकार्डों का कबाड़खाना बनाये हैं।यह वह वक्त था जब रिकार्ड  बजते कम ठिठकते अधिक थे।घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के, हाय धडके क्यों धडके....टाइप का जब गाना चलता था तो सुनने वालों को पता होता था कि इसे कहीं न कहीं अटकना जरूर है।
समय बदल गया है।अब कोई इसरार बेवजह मार नहीं खाता।रिकार्ड बेआवाज़ टूट जाते हैं।दरअसल टूटते भी नहीं, नये बन जाते हैं।इसरो की तो आदत -सी हो चुकी है पुराने रिकार्ड तोड़ने और नये बनाने की।इसरो के विज्ञानी मेहनत करते हैं।सरकार झटपट अपनी पीठ ठोंक लेती है।विज्ञान अपना काम करता है और  भक्त  लोग इस मौके पर खुश होकर पीपल के पेड़ के नीचे कडुवे तेल के दिये जला आते हैं।यह अलग बात है कि आसमान में काले बादल उमड़ने घुमड़ने के बाद भी नहीं बरसते तो विपक्षी कयास लगा लेते हैं कि हो न हो, ऐसा इसरो के किसी सेटेलाईट की नीयत में खोट की वजह से हुआ है।वरना बादलों की क्या जुर्रत कि जनता कातर हो पुकारे-काले  मेघा पानी दे,पानी दे गुड़धानी दे और वे न बरसें।
इसरो विज्ञान सम्मत तरीके से अपना काम कर रहा है।शाब्दिक तार्किकता में सराबोर कुतर्क भी अपना काम धडल्ले से  कर रहे हैं।इसरो द्वारा प्रक्षेपित सेटेलाईट अपने अपने ऑरबिट में पहुँच कर उसी तरह संधान कर रहे हैं जैसे खचाखच भरी बस में अचानक बैठने के लिए विंडो वाली सीट मिल जाने पर मुसाफिर चैन की सांस और  खर्राटें लेता है।
इसरो के विज्ञानी दनादन रिकार्ड पर रिकार्ड बना रहे है।मौसम विभाग के सुपर कम्प्यूटर फटाफट मौसम के आंकड़े दे रहे हैं।भयानक सूखे  और दरिद्रता से जूझता किसान आसमान की ओर टकटकी लगाये रहता है।उसे वहां न  कोई  सेटेलाईट दिखता है और न कोई दीगर  उम्मीद।हालांकि तमाम मायूसियों के बीच उम्मीद अभी भी जिंदा लफ्ज़ है।


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