दिल्ली एक सरकारें दो


सरकारों के सामने हमेशा यह समस्या रही है कि वे काम तो खूब करती  हैं लेकिन उसका सम्यक प्रदर्शन नहीं कर पातीं  मेधावी बच्चे परीक्षा में इसलिए फेल कर दिए जाते हैं कि वे एक्जामिनेशन के वक्त अपने ज्ञान को उत्तर पुस्तिका पर ठीक से धर नहीं कर पाते  इस उल्टे- पुल्टे समय में खाने पचाने से अधिक उसे दिखाने   का अधिक महत्व है   यह राजनीतिक मामला नहीं ,विशुद्ध संवाद दक्षता से जुड़ा सवाल  है  मानना होगा कि वर्तमान में सरकार अपनी उपलब्धियों को विज्ञापित करने  में कामयाब है  वह शून्य में से सफ़ेद कबूतर और खाली टोपी में से खरगोश निकाल कर दिखा देने की कला जानती है  अबकी बार जादू भरी सरकार है 
सरकारों के सामने सदा - सदा से संवाद के प्रकटीकरण की समस्या रही है  इस समय दिल्ली में दो दो संवाद प्रवीण सरकारें  हैं  एक कामधाम करने से अधिक लड़ने- झगड़ने में इस कदर तल्लीन है कि उसके पास किसी को देखने दिखाने के लिए फुरसत नहीं है  दूसरी ने किया कुछ खास  नहीं लेकिन उसके पास बिना कुछ  किये उसे  दिखाने की अभूतपूर्व स्किल  है  एक के हाथ में झाड़ू और सबको लतियाने की बेचैनी है तो दूसरे के पास हर मर्ज का इलाज करने वाली सेल्फी  है   हना न होगा कि दोनों तरह की सरकारें अपने -अपने मंतव्यों में कामयाब  हैं 
अब सरकारें सिद्धांत या कर्तव्य निर्वहन से नहीं चलती  वे चलती है वाकपटुता और इवेंट मैनेजमेंट से   लोकप्रियता बरक़रार रहती हैं एंग्रीयंगमैन टाइप की इमेज से  चमकीली पन्नी में लिपटी उस सूखी रोटी के मौखिक आशवासन से जो पराई चुपड़ी देख कर न ललचाने की नसीहत के साथ मिलती है   सरकारें अवांतर प्रसंगों की पटरी पर दौड़ती हैं  वीडियो कांफ्रेंसिंग ,मीडिया ब्रीफिंग और विपुल प्रचार के बलबूते पर गतिमान दिखती हैं 
एक समय था जब हमारे खिलाडियों के पास मारक भावना (किलर स्टिंग) नहीं थी  इसलिए वे प्रतिभावान होने के बावजूद हारते रहते थे  फिर हुआ यह कि वे इतने मारक बनते  गए कि अन्यत्र कारणों से  जीतने या हारने लगे   अब राजनीति भी खेल है इसमें सब कुछ चलता है  यह उस खटारा टैम्पू की तरह  है ,जो चलता कम धुआं अधिक छोड़ता है  सरकार उस उत्सवी घोड़े की तरह है जो चलती कम ठुमकती अधिक है  यह उस चौकीदार जैसा है जो जागते रहो की गुहार लगा कर खुद चादर तान के सो जाता है  
दिल्ली में इस समय दो तरह की सरकारें हैं  एक दूसरे की धुर विरोधी सरकार  एक कहती है हम चुने हुए हैं जी  दूसरा कहता है कि  होंगे  पर हम घुटे हुए हैं   दोनों को दिल्ली और मुल्क से प्यार है  दोनों के पास भक्तवृंद है  भक्तमंडली के पास तरह तरह के ढोल मजीरे हैं 
जहाँ दो बर्तन होंगे वहां खटकेंगे ही  सो वो खनक रहे हैं  पूरे सुर ताल और लय के साथ बज रहे हैं  अपने अपने होने की पुरजोर मुनादी करते हुए 
दिल्ली एक सरकारें दो, ‘बहोतनाइंसाफी है ! अब पसीने में तरबतर भीगी बिल्ली सी दिल्ली भला करे तो क्या करे ? उसकी जान सांसत में है 





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