आओ चलो भूकम्प मनाएं


भूकम्प फिर आया ।ठीक उसी तरह से आया जैसे अनचाहा मेहमान बस अड्डे पर जाकर उपयुक्त बस न मिल पाने की आड़ में  लौट आता है ।गया हुआ मेहमान जब फिर -फिर लौटता है तो बड़ा खलता है । सबको पता है कि मेहमान और मछली तीसरे दिन गंधाने लगते हैं । पर क्या किया जाये जब मेहमान को झेलना मजबूरी बन जाये तो कहना पड़ता है कि चलो भूकम्प को इवेंट बनायें ।सब मिल कर भूकम्प - भूकम्प मनायें ।बेबसी जब दर्शनीय बना जाती है तो उसके जरिये हमारी सदाशयता का पुनर्पाठ होता है । मजबूरी में फंसा आदमी बड़ा काव्यमय और दार्शनिक हो जाता है ।
भूकम्प आया तो हमारे भीतर की दयालुता को जाग  उठी  ।अब अवसर है कि  घर के कबाड़ को इमदाद के रूप में बांटा जाये । पराई आपदाओं को जमकर सेलिब्रेट किया जाये ।अवसर मिले तो तबाही के मंजर को ढंग से महसूस किया जाये ।भयग्रस्त लोगों के क्लोजअप खींच कर सोशल मीडिया की दीवार पर ‘फीलिंग सेड’ के हैश के साथ चिपकाया जाये ।आवाम को पता लगना चाहिए की बंदा किस कदर संवेदनशील है कि गमगीन होने का सलीका जानता है ।
अबकी बार भूकम्प समर वेकेशन में आया है ।निठल्ले स्कूली  बच्चों के लिए मुफ्त में मिलने वाले मनरोंजन की तरह ।वे भरी दोपहरी में कॉलोनी के पार्कों में हंसी ठट्ठा करने के लिए निकल आये हैं ।एक दूसरे को पकड़ते झगड़ते और छुपते - छुपाते मौके का लुत्फ़ ले रहे हैं ।हाईटैक टीनएजर धड़ाधड़ सेल्फी खींच कर  अपने सरोकारों को लगातार शेयर करते जा  रहे हैं ।हाउ स्वीट ...हाय डैशिंग ...औसम ....सुपरब ....जैसे जुमले मोबाइल दर मोबाइल कुलांचे भर रहे हैं ।आंटियां अंकलों की सलामती कन्फर्म करने के बाद व्हाट्स एप पर आगामी किटी पार्टी के थीम पर गम्भीर मंत्रणा में उलझ गई हैं ।कुछ रिटायर्ड अंकल तो अपनी वाली को निहारते हुए बार -बार कह रहे है कि ये सरकार निकम्मी है ।उनका बस चले तो वे सरकार को खड़े खड़े ही बर्खास्त करने का हुक्म जारी कर दें ।
भूकम्प आया तो बतकही के जरिये वक्तकटी के उस्तादों की बन आई है । तीस चालीस  सेकिंड के झटके ने उन्हें कई दिनों तक विमर्श के लिए कच्चा माल उपलब्ध करा  दिया है ।वे इससे हफ़्तों अपनी योग्यता के हिसाब से रोटियां बनायेंगे  और भूकम्पीय क्षति  के अपुष्ट अनुमानों  के अचार के साथ चटखारे लेकर दूसरों के साथ मिल बाँट कर खायेंगे ।
भूकम्प कुछ लोगों के लिए बड़े लटके झटके मुहैया करा जाता है ।

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