मानसून सत्र , रेनीडे और राजनीतिक मंतव्य
मानसून सत्र शुरू
हुआ। इसे इसी तरह आरम्भ होना था जैसे यह हुआ। खूब गुलगपाडा हुआ और फिर थोड़ी
हीलाहवाली के बाद पूरे दिन की छुट्टी। मीडिया सवाल दर सवाल
पूछता रह गया और वे हंसते हुए निकल लिए। ठीक उसी तरह जैसे कभी फ़िल्मी नायक हर
फ़िक्र को धुएं में उड़ाता हुआ चला जाता था। जैसे स्कूली बच्चे रेनीडे अवकाश की
मुहंमागी मुराद पूरी हो जाने पर बस्तों और तख्ती को विजयध्वज को लहराते हुए घर की
ओर चले जाते थे।
इसे देख याद आया कि
पुराने दिनों में पाठशालाओं में भी तो ऐसा ही होता था। बच्चे बारिश के दिनों में
घर से स्कूल आते थे। उनके साथ साथ चहलकदमी करते हुए जलभरे नटखट बादल भी आ धमकते थे। बच्चे बादलों को देख हरेभरे
मैदानों में खेलने के लिए मचल उठते थे।छुट्टी करने की पुरजोर मांग करते थे और
मास्टरजी अंतत: पसीज जाते थे। रेनी डे हो जाता था। हालाँकि यह बात बहुत बाद में
पता लगी कि उसे रेनीडे कहा जाता है। यह उस समय की बात है जब बादल बिना अधिक नखरे
दिखाए चट से बरस कर पट से सबको भिगो देते थे।
यह कैसा मानसून सत्र
है,जो शुरू तो हो लिया पूरे विधिविधान के साथ लेकिन न सदन में छाते लहराए ,न काली
मिर्च की धूनी उड़ी ,न किसी का कॉलर किसी ने खींचा, न आपस में धरपटक हुई और न ही सदन
की गरिमा तार-तार हुई। इससे भी बड़ी बात ,कोई
इस्तीफ़ा ब्रेकिंग न्यूज़ बन कर प्रकट भी नहीं हुआ। वे रिटायर्ड लोग जो बाय डिफॉल्ट
सनसनी पसंद होते हैं , उनको लगा कि वे दिन भर बेकार टीवी देखते रहे। इससे बेहतर तो
वे किसी थियेटर में लगी घटी दरों वाली अलीबाबा चालीस चोर टाइप कोई फिल्म ही देख
आते। उससे कुछ रसरंजन तो होता। असल बात तो इंटरटेनमैंट की है ,वो चाहे जिस फॉर्मेट
में आये।
आज सत्र का पहला दिन
था सो रेनीडे हुआ।छुट्टी मिली। कुछ धमाल तो बनता ही है। धमाल करना नहीं आता था तो
कुछ तूफानी ही कर लेते। धमाल मन से उपजता है। टीवी कैमरों के सामने सदन में लाइव
फबता है। परिसर के बाहर खड़ी चैनल वालों की ओबी वैन को देख कर होता है। एंकर के
माइक को देखते ही धमाल के लिए जी मचल उठता है। तूफानी गुपचुप हो जाता है। कोल्डड्रिंक
का ढक्कन खोलते ही हो जाता है।बड़े सस्ते में तूफ़ान प्रकट होता है। निठल्लेपन के
पलों में मस्ती आ जाती है।सदन की कैंटीन के सस्ती दरों के पकौडों के जरिये मानसून
आने का आनंद कई गुना बढ़ जाता है।
सुना है सदन में रेनीडे
अब कई दिन मनेगा। ऐसे ही लोग आयेंगे। कुछ देर इधर- उधर मौज मस्ती करेंगे। गपशप
करेंगे। सरोकारों की दुहाई देकर कामकाज स्थगित करवाएंगे। जन आकांक्षाओं का हवाला
देकर एक दूसरे को गरियायेंगे। उत्तेजना में बंद मुट्ठियाँ हवा लहराते अपने घरो की
ओर चले जायेंगे।
मानसून सत्र के लाइव
टेलिकास्ट के जरिये बच्चे बच्चे को पता लग
गया है कि रेनीडे अभी भी मुल्क में पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। अकर्मण्यता का
एक नाम रेनीडे और राजनीतिक मंतव्य भी होता
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