अब तक पैंतालीस ......


उनके बाईस साल की राजकीय सेवा के दौरान पैंतालीस बार तबादले हो चुके हैं l यहाँ से वहांविभाग दर विभाग और पद दर पद  इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है सेवार्थ नौकरशाह  इधर से उधर आते  जाते रहते  हैं  उनके इस आवागमन से ही सरकार की पैनी नाक की साख बनती है l एक जगह ठहरा हुआ पानी गंधाने लगता है l जो  चलायमान रहता है उसकी  निर्मलता बरक़रार रहती है जनहित में किये गए तबादलों से ही  सरकार की  नेक मंशा और कार्यकुशलता का पता मिलता है इससे एक लाभ यह भी होता रहा है कि राजकीय व्यय पर नौकरशाहों को हवा और पानी बदलते रहने का लगातार अवसर मिलता  है  यह सर्वविदित है कि हवा पानी में बदलाव से सेहत सुधरती है  कुशल प्रशासन के लिए प्रशासकों का चुस्त- दुरुस्त रहना कितना जरूरी  है ,यह बात किसी से छुपी नहीं है l

सरकारी तंत्र में तबादले वीरता प्रदर्शन के लिए किसी रणबहादुर को मिले तमगों  की तरह होते हैं ये तमगे किसी शिकारी के घर के ड्राइंगरूम की दीवार पर टंगी उसके द्वारा मारे गए जानवरों की खाल की तरह होते हैं  ,जिससे उसके अदम्य साहस और आखेट  कौशल का पता मिलता है जिस नौकरशाह के  पास जितने अधिक ट्रांसफर आॅडर वह उतना अधिक चर्चित व्यक्तित्व  और ईर्ष्या का पात्र बनता है लोग कहते फिरते हैं कि हाय इसके जितने तबादले हमारे क्यों न हुए l सबसे अधिक आदरणीय वे अधिकारी होते हैं जिनके जितनी द्रुतगति से  तबादले होते हैं उससे भी अधिक स्पीड से उनका निरस्तीकरण हो जाता है l कभी कभी तो ऐसा भी हुआ है कि ट्रांसफर ऑडर से पहले उसका कैंसिलेशन प्रकट हो जाता है l कुछ तबादले तो सरकार करती ही इसलिए है ताकि उन्हें निरस्त करके अपनी  बिगडती हुई छवि में गुणात्मक सुधर ला सके l तबादले करना सरकार का मौलिक दायित्व  है और उसे रुकवाना या उसका रुख मनचाही जगह की ओर मोड देना नौकरशाही  का   चातुर्य  l

अब सुनने में आया  है कि  ईमानदारी  के दुर्गम रज्जु मार्ग पर चलते -चलते वह अंतोतगत्वा  पुरातत्व महकमे की दहलीज तक  पहुँच गए हैं कर्तव्यपरायण और सत्यनिष्ठ आदमी के लिए इससे उपयुक्त स्थान और हो भी क्या सकता है ? जिस चीज की व्यवहारिक दुनिया में उपादेयता खत्म हो जाती है ,वह या तो कबाड़खाने में जाकर जमती  है या अजायबघर में फबती है भाषाई लिहाज से इतिहास कबाडखाना और अजायबघर पर्यायवाची भले  न हों पर समानार्थी शब्द तो हैं  ही l पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं के मूल्य और महत्व को कबाड़ी और इतिहासकार से  बेहतर  कौन परख  सकता है ?
बाईस साल में पैंतालीस तबादले प्रथमदृष्टया तो एकदम नियमानुसार लगते हैं ,बस इसमें पेंच सिर्फ इतना है कि एक वर्ष में दो तबादले की दर से चवालीस ट्रांसफर  बनते है ,तब पैंतालीसवा तबादला क्यों कर हुआ ? यह किसी लिपकीय भूल  के चलते हुआ या अन्यत्र कारण से ? इसकी गहन जाँच और गवेषणा आवश्यक है भूल और लिपिक को सुधारा जा सकता है लेकिन अन्य वजहों की शिनाख्त के लिए उसकी तलहटी में उतर कर राजनीतिक निहितार्थ को ठीक से समझना  पड़ता है l
चवालीस तक तो ठीक पर यह पैंतालीसवा जरा संदेह  पैदा कर रहा है यह तबादला निरंतर विकास और रूटीन ट्रांसफर में यकीन रखने वाली  सरकार की आँख में अचानक गिर गए कंकड़ की तरह खटक रहा है l

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