रैली ,बैंकाक ,सेबिटिकल और लंतरानी


रैली हो गई । रैली होनी ही थी । रैलियां होती रहती हैं । रैली में भीड़ थी । गहमागहमी थी । किसानों की जमीन से अधिक अपनी राजनीतिक जमीन को फिर पा लेने का उतावलापन था । गुलाबी पगड़ी थीं । सोमरस की महक  के साथ पसीने की गमक थी । मंचासीन लोगों को अपना चेहरा दिखाने की सनातन उत्सुकता थी । मौसम गर्म था । ठंडाये नेताओं में जोश था । उनके भीतर का अवसाद पिघलता हुआ लग रहा था । उनकी बॉडी लेंग्वेज में उचाट मन के रूपांतरण की गाथा लिखी दिख रही थी । मीडिया के रणबांकुरे ओवरबिजी दिख रहे थे । वे रैली स्थल के जर्रे जर्रे से लगातार पूछ रहे थे कि अब वे कैसा महसूस कर रहे हैं ।
रैली के लिए मंच सजा था । उसे खूब ऊँचा बनाया गया था । यह बात कन्फर्म नहीं है लेकिन भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि मंच के नीचे फोम के मोटे गद्दे बिछाए गए थे ताकि भावातिरेक में  कोई नेता कुरते की बांह  चढ़ाता वहां से छलांग लगा भी दे  तो चोटिल न हो ।  पार्टी और नेता की रिलाउन्चिंग के समय ऐसी -वैसी हर बात का ख्याल रखना ही पड़ता है । तिस पर इस बार तो विपश्यना से प्राप्त होश और थाईलैंड प्रवास से प्रवास से प्राप्त अतिरिक्त  जोश की साख  इसी मंच पर दांव पर लगी थी ।
रैली खूब कामयाब रही । वहाँ व्यवस्था एकदम चाकचौबंद रही । मंच वालों को ठंडा मिनरल वाटर और नीचे भीड़ लगाये लोगों को सादा पानी पिलवाने की माकूल व्यवस्था की गई  ताकि वे  रैली स्थल पर सरकार को पानी पी -पी कर कायदे  से कोस सकें । पार्टी ने भीड़ की  हर जरूरत का ख्याल रखा । नेताओं ने मंच से खूब भाषण के फुग्गे उडाये । बैंकाक के अरण्यों में की गई घनघोर तपश्चर्या का फलित उनकी ओजस्वी वाणी से प्रकट होता हुआ लगा । यह प्रतीति जनता को जरा कम और नेताओं को कुछ अधिक हुई । जाकी  रही भावना जैसी टाइप की  रही।
रैली के दौरान सेबिटिकल की भी खूब चर्चा रही । कुछ लोग दबी जुबान में एक दूसरे से कहते सुने गए कुछ भी कहो भइया ,यह सेबिटिकलवाभी है ,चीज भोत ही गज़ब की । अधिकांश लोगों को लगा कि पार्टी कोई  सेबेटिकल ब्रांड का उन्नत बीज काश्तकारों को दिलवाने की मांग उठाने वाली है ,जिससे उगी फसल ओले और  बेमौसम बारिश में बची रहेगी ।
लब्बेलुआब यह कि रैली की तमाम लंतरानियों  में सबको कुछ न कुछ मिला या मिलता हुआ -सा लगा । 


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