वह इस तरह क्यों मरा ? ,,,,


आप वाले परेशान हैं l राजस्थान का किसान दिल्ली के पेड़ से सरेआम लटक कर मर गया l लोग मरने के लिए कैसी कैसी जगह और वजह ढूंढ लेते हैं l नेताओं को शक है कि यह मरने वाला और चाहे जो हो किसान तो नहीं रहा होगा l और यदि किसान होगा भी तो गरीब गुरबा नहीं होगा l एक पीड़ित शोषित आदमी के पास इस तरह मरने की फुरसत कहाँ ? वह तो अपने घर द्वारे बैठ कर मुआवजे की बाट जोहता है l मदद के लिए पटवारी से लेकर अफसर तक और ग्राम प्रधान से लेकर जिला स्तरीय नेता तक सभी के पीछे पीछे चिरौरी करता घूमता है l वह तिल -तिल कर मरता है लेकिन इस तरह अपने प्राण नहीं त्यागता l वह मरते दम तक अपनी औकात याद रखता है और जब मरना अपरिहार्य हो जाता है तो चुपचाप मर जाता है l
आप वालों को उसके इस तरह मरने में बड़ी साजिश की बू आ रही है l अन्य दलों के नेताओं को इसमें अपने लिए मौके ही मौके दिखाई दे रहे हैं l किसान की जब फसल बरबाद होती है तब राजनीतिक जमीन पर उम्मीदों की फसल लहलहाती है l सपने जब धाराशाही होते हैं तब गिद्धों के लिए महाभोज का इंतजाम होता है l वह अन्नदाता है इसलिए उसे अपने लिए कुछ मांगने का अधिकार नहीं है l यह मुल्क कृषिप्रधान देश है इसलिए यहाँ के किसानों को मरने के मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए l उसे अपने रुतबे को समझ लम्बे अरसे तक भूखे रहने का सलीका सीखना चाहिए l
वह तमाम तमाशबीनों की उपस्थिति में अपनी पगड़ी का फंदा बना फांसी पर लटक गया l लोग देखते रहे और वह मर गया l नेता तक़रीर करते रहे और उसकी जिंदगी रीत गई l खबरनवीस एड़ियों पर उचक कर उसकी मौत के लाइव मंजर को फिल्माते रहे और उसके पास जिन्दा रहने की वजह खत्म हो गयीं l वक्त रहते उसे किसी ने नहीं बचाया l वह किसी का कुछ नहीं लगता था तो उसे कोई क्यों बचाता l वह किसी वीआईपी का निकट संबंधी भी तो नहीं था l और तो और वह दिल्ली का रहने वाला भी नहीं था तब उसकी चिंता दिल्ली वाले क्यों करे l
एक भोलाभाला आदमी पेड़ से लटक कर मर गया l वह किसान था ,व्यापारी था या कुछ और इस पर शोध चल रहा है l फ़िलहाल राजनीति के हाट पर घड़ियाली आसुओं की डिमांड यकायक बहुत बढ़ गई है l 

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