वह आ रहे है


he is coming
मीडिया के स्वयंभू गुप्तचर जिसे न जाने कहां-कहां ढूंढते फिर रहे थे, वह आखिरकार मिले भी तो कहां मिले! एक कम चर्चित देश के जंगल में सच की तलाश में साधनारत। जब उनका अता-पता मिला था, तब भी टीवी वाले सक्रिय थे, और अब जब उनके आने की खबर है, तब भी वे सक्रिय हैं। टीवी पर किसी भी क्षण मोटे अक्षरों में लिखा दिख सकता है-वह आ रहे हैं।

कुछ दिनों पहले उनकी उपस्थिति की थाह पाने के लिए लोगों ने आकाश-पाताल एक कर दिया था। अति उत्साही गोपीचंदों ने उनके घर से लेकर पार्टी दफ्तर के कोने-कोने की खाक छानी, पोगो के कैरेक्टर, भूमि अधिग्रहण संबंधी दस्तावेजों से लेकर उनके बेड के गद्दे के नीचे मिली चॉकलेट की पन्नियों तक में बारीकी से तलाशा था उन्हें।

वह सत्य की तलाश में थे, और यह बात सबको पता है कि सच गहमा गहमी से भरी रोजमर्रा की चीजों के बीच कहां मिलता है। सच तो सदियों से ही सघन अरण्यों में, कंदराओं के भीतर, वटवृक्ष की छाया में आराम फरमाता मिला है। आज तक किसी को यह मेट्रो ट्रेन की सीट पर लावारिस रखा हुआ या किसी धन्ना सेठ की जैकेट के जेब के बाहर अटका हुआ या मल्टीप्लेक्स की रेलिंग पर लटका हुआ नहीं मिला।

वह सच की तलाश में उसी तरह निकले थे, जैसे कभी सिद्धार्थ महल से दबे पांव निकले थे। इनकी शादी नहीं हुई है, इसलिए किसी को बताने या बिना बताकर जाने जैसा धर्म संकट भी नहीं था। वह जाते-जाते आलाकमान को बता गए थे कि वह एजुकेशन लीव पर जा रहे हैं। चूंकि वह खुद ही अपने आलाकमान हैं, इसलिए इस विषय में विस्तार से उन्होंने जो कुछ बताया होगा, अपने कान में बता दिया होगा। इसी से उनकी गुमशुदगी का रहस्य गहराया था।

बहरहाल, अब वह सत्य को पा चुके हैं। संभव है वह नवीनतम सच के पैकेज के साथ अपनी पार्टी और खुद को रिलॉन्च करें।

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