खुली चिट्ठी का लिखना और बोतल बंद का रोमांच

आजकल चिट्ठी कौन लिखता है?
हालांकि चिट्ठियां अभी भी लिखी और भेजी तो जाती ही हैं।जब तक यह कायनात है,तब तक लिखा-पढ़ी  तो जारी रहनी ही है।यह अलग बात है कि अब इन चिट्ठियों को ‘मेल’ और लिखी  इबारत को ‘टेक्स्ट’ कहा जाता हैं।ये बिना पर के उड़ लेती हैं और पलक झपकते ही  लैंड भी कर जाती हैं।पर इस तरह की मेल को हाथ में थाम कर कोई नहीं गाता –चिट्ठी आई है,आई है,बड़े दिनों के बाद।
फिर भी कुछ लोग हैं जो चिट्ठी लिखने की जिद पर आमादा हैं।वे बात-बात पर और कभी-कभी बेबात चिट्ठी लिख मारते हैं।और चिट्ठी भी ऐसी वैसी नहीं खुली चिट्ठी।एक जमाना था जब चिट्ठियों की बात ही कुछ और थी।तब खुली चिट्ठियों वाले पोस्टकार्ड से सुखद और दुखद सूचनाओं ,बधाइओं और श्रृद्धांजलियों का आदानप्रदान समभाव से हो जाया करता था।लेकिन असल रोमांच तो बंद लिफाफों  में ही विरजता था।उन दिनों किसी चिट्ठी में यदि यह लिखा आ जाए कि इसे तार समझो और तुरंत आओ तो लोग पहली उपलब्ध बस या रेल से गाँव घर की ओर कूच कर जाते थे।कोई मूढ़मति भी उस तार को तार समझ उस पर गीले कपड़े सुखाने की हिमाकत नहीं करता था।
अब खुली चिट्ठियां हवा में लहरा कर अपने सरोकारों  पर इतराने का वक्त है।पहले वह समय भी गुजरा जब खुली चिट्ठी बंद बोतल में रख कर सागर की धार के साथ यह सोच कर तैरा  दी जाती थी कि वे देर- सवेर जिनके लिए हैं,उन्हें मिल ही जाएँगी।वैसे अमूमन चिट्ठियां बंद लिफाफे में ही अपनी यात्रा तय करती थीं।लेकिन अब जिस मात्रा में खुली चिट्ठी लिखी जा रही हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि हम लिफाफा विरोधी युग में प्रवेश कर चुके हैं। अब बाज़ार में शगुन देने वाले सिक्का लगे लिफाफे ही चलन में अधिक है।कुछ दिनों बाद जब निमन्त्रण पत्र पर  बैंक एकाउंट नम्बर और आईएफएससी कोड छापा जाने लगेगा तब इनका भी  निष्प्रयोज्य हो जाना लगभग तय है।
ओपन लैटर और प्यार का खुल्लमखुल्ला इज़हार एक ही सिक्के दो सपाट पहलू हैं।ये चिट्ठियां दरअसल वे  कनकौए हैं, जो तेज हवा में  ऊंचे आसमान  में  खुलकर उड़ते कम और फरफराते अधिक है।


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