हिंदी विंदी का चक्कर


विश्व हिंदी सम्मेलन हो रहा है। हिंदी दिवस आने को है । मन हिंदी -हिंदी हो रहा है। बच्चे उनसठ का मतलब नहीं समझ पा रहे हैं। हम उन्हें यह बता कर कि उनसठ फिफ्टी नाइन को कहते हैं ,रीझे जा रहे हैं। बच्चे का हिंदी ज्ञान जितना न्यूनतम होगा उसका भविष्य उतना ही अधिक उज्ज्वल होगा। हिंदी तरक्की के रास्ते का अडंगा है। अधिक हिंदी विंदी के चक्कर में आदमी किसी सरकारी दफ्तर के बाबू पद से ऊपर नहीं जा पाता। इससे ऊपर के ओहदे पाने के लिए सिर्फ इंग्लिश ही काम आती है। हिंदी को इंग्लिश की तरह जब बोला जाता है तब अभिव्यक्ति की आज़ादी मुखरित होती है। लोगों को पता लगता है कि बंदा पढ़ा लिखा है।
विश्व हिंदी सम्मेलन में तमाम जगहों से लोग बुलाए गए हैं। वे सब नियत तिथि पर नियत स्थान पर एकजुट होकर हिंदी के बारे में चिंतित होंगे। वे हिंदी का मान बढ़ाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का अहद लेंगे। चिंता कर चुकने के बाद अहद लेना वैसा ही है जैसा भरपेट भोजन कर लेने के बाद चूरन फांक लेना। अधिक देर हिंदी में बतियाने से विद्वानों को अपच होने लगती है।वे जब आपस में किसी मुद्दे पर उलझते हैं तो कुछ देर हिंदी बोलने के बाद संस्कृत पर आते हैं और बात बनती न देख सीधे इंग्लिश पर उतर आते हैं।
हिंदी राष्ट्रभाषा है। यह भारत की भाषा होगी पर इण्डिया की लैंग्वेज नहीं है। इसे हिंदी इण्डिया कहने का गौरव प्राप्त नहीं है। यह नौकरों , मालियों ,चौकीदारों ,चपरासियों और घर में दीगर काम करने वाली बाइयों की भाषा है। इससे मोटी पगार वाले पैकेज नहीं मिलते। इससे सिर्फ उतनी ही पगार मिलती है जिससे आदमी जैसे तैसे जिन्दा रह सके।इसके बावजूद हिंदी का अपना अहंकार है। हिंदी भाषी बने रहने की मजबूरी है। कमजोर आदमी जिस तरह आदतन दयालु होता है उसी तरह इंग्लिश सीखने में असफल रहने वाला हिंदी की दुर्गति को लेकर अवसाद में रहता है।
हिंदी दिवस पर जो लोग विश्व हिंदी सम्मेलन में नहीं जा पाए होंगे वे वहाँ अपने न बुलाए जाने की वजह पर गहन विमर्श करेंगे। वे जो बुला लिए गए थे उनको लानत टाइप कुछ भेजेंगे। अगली बार उनकी सम्मेलन में भागीदारी कैसे सुनिश्चित हो इसका ब्लूप्रिंट बनायेंगे। उनकी  हिन्दीमय राह कैसे सुगम हो और कैसे दूसरों को अडंगी मार कर गिराया जाए ,बात इस विषय पर भी होगी।
हिंदी दिवस और विश्व हिंदी सम्मेलन के जरिये हिंदी को अनेक हिदायतें मिलेंगी। उसे बताया जायेगा कि वह जब तक रोमन में नहीं लिखी जायेगी तब तक गई गुजरी ही रहेगी।हिंदी अंग्रेजी का हैट पहन कर जेंटिलमैन लेंग्वेज लगेगी। इसके अलावा अधिकाधिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल हिंदी को इंग्लिश के नजदीक ले आएगा बूजम फ्रेंड बना देगा। वक्त आ गया है कि हिंदी को वाकई बचा रहना और वैश्विक बनना है तो उसे अपने देसी लुक को त्याग कर इंग्लिश जैसा दिखना भी होगा।
विश्व हिंदी सम्मेलन और हिंदी दिवस भाषा के लिए राहत मिशन जैसे हैं।यह काम हमेशा पूरे विधि विधान के साथ होता है। इसके जरिये हिंदी कितने प्रतिशत बच पाती है या बचा ली जाती है?
यह बात पूछने लायक तो नहीं हैं फिर भी पूछ लेने में हर्ज ही क्या है।




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