हिंदी सम्मेलन में न बुलाये जाने की वजह
विश्व हिंदी सम्मेलन
मुल्क में कहीं होने को है ।यह खबर मुझे उड़ती -उड़ती मिली थी। मुझे तभी लगा था कि
यह बात सोलह आने सच होगी। जो खबर अफवाह के प्रारूप में उड़ान भरती हुई आती है वह
अमूमन सच निकलती हैं। मुझे इसकी पुष्टि के लिए कोई प्रयास भी नहीं करना पड़ा। नुक्कड़
पर छोले भटूरे बनाने वाले रामखिलावन ने गदगद स्वर में सूचना दी कि वह सम्मेलन में भाग लेने के लिए बाकायदा बुलाया गया
है। -अहोभाग्य ,मैंने
कहा। अकेले जा रहे हो ? मैंने पूछा।
-नहीं जी।परचा साथ ले
कर जाऊँगा। उसने बताया।
मुझे लगा कि कढ़ाही का समानार्थी देशज शब्द परचा भी होता होगा। या फिर अमरीकन इंग्लिश में कढ़ाही के
लिए प्रयुक्त होने वाला ‘स्लेंग’
जैसा कुछ होगा । मैंने पूछ लिया ,करछी आदि के बिना वहां काम चल जायेगा। मेरी बात
सुनकर रामखिलावन ‘हो हो’ कर हंसा। उसके
हंस पड़ने के कारण मेरे चेहरे पर
प्रश्नचिन्ह लटक गया तो उसने खुलासा किया कि वह वहां हिंदी का मान बढ़ाने जा रहा है।उसे
वहां हिंदी साहित्य में सौंदर्यशास्त्र की अवधारणा पर परचा पढ़ने के लिए बुलाया गया
है।
-सिर्फ परचा ही
पढ़ोगे या सम्मेलन में आने वालों को अपनी कारीगरी का सुबूत भी दोगे ? मैंने जानना
चाहा।
- देंगे जी जरूर
देंगे। वहां हमारे चेले अपना स्टॉल लगाएंगे। दो भठूरे के साथ एक फ्री विद चटनी देंगे
ताकि सारी दुनिया को पता लगे कि हम हिंदी वाले कितने खमीर भरे, क्रिस्प और उदारमना
होते हैं। यह कहते हुए उसके मुखमंडल पर हिंदी की वैश्विक छवि दमक उठी। उसकी
चकाचौंध में मेरा हिंदी को लेकर अब तक इधर उधर से जुटाया गया पारंपरिक ज्ञान
चुंधिया गया।
-और कौन कौन जा रहा
है शहर से ? मैंने बात का रुख बदलना चाहा।
- लाल जी मैजिशियन ,
क्रान्ति भ्रांति कुंजी प्रकाशक जी ,
लल्लूमल लड्डूवाला ,मोबिन पतंगसाज और जैन प्रोविजन स्टोर वाले की जाने की तो पक्की
खबर है । व्हाट्स एप पर यह बात मैंने खुद पढ़ी। उसने लेटेस्ट अपडेट दिया।
-ये सब.....ये वहां
किसलिए बुलाए गए हैं?मेरी समझ में जब कुछ न आया तो पूछ लिया।
- लाल जी वहाँ अपनी
जादूगरी के जरिये बताएँगे कि हाथ की सफाई किस तरह हिंदी के विकास में योगदान दे
रही है। क्रान्ति भ्रांति हिंदी में
कुंजियाँ छाप छाप कर हिंदी की इतनी सेवा कर रहे हैं कि उनको बुलाना तो बनता ही है।
आधा शहर तो उन्हीं कुंजियों को पढ़ लिख कर
विद्वान बना है। लल्लूमल वहां आये डेलीगेट को मुफ्त में लड्डू खिलाकर बताएगा कि
हिंदी कितनी सुमधुर भाषा है। और जैन साहब..... कहते हुए वह ठिठका।
हाँ हाँ और जैन साहब
,वह क्यों ? कहते हुए वह रुका तो मैंने तुरंत पूछ डाला ।
-दरअसल जैन साहब को
इसलिए बुलाना पड़ा क्योंकि सम्मेलन के संयोजक की बीवी वहां से सारे क्रीम पाउडर घटी
दरों पर लेती है। उनका तो वहाँ जाना बनता ही है। उसने रहस्य पर से पर्दा हटाकर
खांटी हकीकत बयाँ की।
- और मोबिन ? मेरी
जिज्ञासा का घट अभी रीता नहीं था।
-वह अपनी पतंगों के
जरिये हिंदी की कीर्ति को चतुर्दिक करेगा। उसके पास इसका भी जवाब था।
- ठीक कहा।
सौंदर्यशास्त्र के साथ उसका सम्यक बोध होना चाहिए वरना बेचारी हिंदी का क्या होगा।
मैंने कहा तो रामखिलावन हंस पड़ा लेकिन इस बार ‘हो हो’ करके नहीं ‘हें हें’ करके हिनहिनाया। बात जब ठीक से समझ न आये तो आदमी
एकदम घोड़े के माफिक हिनहिनाता ही है।
धीरे धीरे जानकारी
मिलती गई कि विश्व हिंदी सम्मेलन में तमाम तरह के लोगों को किसी न किसी अपरिहार्य वजह से बुलावाया गया है।
मेरे पास कोई निमंत्रण नहीं आया क्योंकि मेरे पास अपने लेखक होने के सिवा कोई अतिरिक्त गलतफहमी या योग्यता नहीं थी। वैसे भी हिंदी
में लेखक होने को कोई उपयुक्त कारण नहीं माना जाता। वह हर कालखंड में बेवजह मौजूद रहता
आया है।
चलो अच्छा है कि
इतने लोग वहां जा रहे हैं। वे न बुलाए जाते तो दुनिया को कैसे पता लगता कि हमारी हिंदी
अब कितनी बहुआयामी हो चली है।
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