अब तेरा क्या होगा बम !


मियां जी का कहना है कि हमारा परमाणु बम किसी के लिए नहीं है।बड़े दिनों बाद उन्होंने अपने मन की बात कही। अच्छा लगा। मन को जुबान पर लाने के लिए अदम्य साहस की जरूरत होती है।बहुत से प्रेमी टाइप के लोग तो अपनी बात को कहने के लिए भीतरी ताकत जुटाते जुटाते प्रेयसी के बच्चों के मामाजी तक बन जाते रहे हैं।वह  बड़ा रिस्क उठा कर यह बात कह पाए है।

हमारे घरों में अमूमन बहुत –सी चीजें किसी काम की नहीं होती फिर भी वह रहती हैं। मसलन दही मथने वाली मथनी।मिक्सी के रहते उसका क्या काम।फिर भी मथनी किचिन के किसी कोने में टिकी रहती है। फ्यूज बल्ब इसलिए कि क्या पता कभी रोशन हो उठें। पुराने टायर कि कभी कोई अजायबघर वाला उसे  मुहँमांगी कीमत दे उठा ले जाये। हमारी शौर्य गाथाएं जो निरर्थक होने के बावजूद स्मृति की शैल्फ में धरी रहती  हैं। इतिहास के संग्रहालय में रखा वीरोद्त्त नायक  का  एक क्विंटल वजन वाला कवच ,जिसे धारण करने से योद्धा के उसके भार से कुचल जाने का आसन्न खतरा मौजूद रहता है। प्रौढ़ दिल के भीतर संजो कर रखी हनीमून की वो यादें और तस्वीरें ,जो आदमी को रिझाती कम चिढ़ाती अधिक हैं। और भी न जाने क्या क्या चीजे हैं  ,जिसे हम बहुत संभाल कर रखे रखते हैं जबकि हमें पता होता है कि वे किसी काम की नहीं हैं।किसी के लिए नहीं है।किसी की वजह से नहीं है। इन फालतू सामानों की हिफाजत के लिए डेढ़ कमरों के मकान का आधा कमरा भक्तिभाव से पूजाघर की तर्ज पर स्टोर बन जाता  है। वैसे तो हम अपने पूजनीय दादा जी की तस्वीर और उनकी छड़ी को साइड बाई साइड इस उम्मीद से रखे रहते हैं कि आगामी पीढ़ी इसे देख कर मारे खौफ के संयमित और संतुलित रहेगी। वह  घर भी कोई घर जिसमें भगवान का निजी स्थान और कबाड़ भरी यादों को संजों कर रखने के लिए जगह न हो।निष्प्रयोज्य वस्तु के हक में हमारी भावुकता कोई न कोई उपयुक्त दलील ढूंढ ही  लेती है।
परमाणु बम वास्तव में किसी के लिए नहीं होता। वह कोई झुनझुना नहीं कि नवजात शिशुओं को बहलाने के काम आये।वह मिट्टी के पहियों वाली गाड़ी नहीं कि बच्चा उसमें डोर बाँध कर जमीन पर घसीटे और वह तडतड कर बज उठे। वह कोई पटाखा या सुर्री  नहीं कि उसे चला कर घर की छत  पर उछलकूद करते बंदरों को भगाया जा सके। इसे अन्य मुर्गाछाप पटाखों की तरह भारत के पाकिस्तान से क्रिकेट मैच जीतने पर बजाया भी तो नहीं जा सकता। बारात की चढ़त के समय इसे सुलगा कर आसमान को चमकाना भी नामुमकिन होता है। यह कोई ऐरा गैरा बम नहीं कि कोल्डड्रिंक की खाली बोतल में रख कर पलीते को जला कर आकाश में उड़ाया जा सके।इसकी उपयोगिता खेत में पक्षियों को डराने वाले उस बिजूका से अधिक कुछ नहीं ,जिस पर अन्तोत्ग्त्वा परिंदे अपना आशियाना बना लेते हैं।
उन्होंने तो कहने को तो कह दिया लेकिन उनके इस कथोपकथन नें अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। मुल्क के बम प्रशासकों की जान के लिए कई झंझट खड़े कर दिए हैं। उनका बम यदि किसी काम का नहीं है तो हमें अपने बम की नए सिरे से ब्रांडिंग करनी होगी। उसकी रिलान्चिग की तैयारी  करनी होगी। इसके लिए मार्केट फ्रेंडली नाम तलाशना होगा।खुले बाज़ार में इसे खपाने के लिए जुगत करनी पड़ेगी। अखबारों में फुलपेज कलर्ड विज्ञापन  देने होंगे। एफएम के लिए जिंगल गढने होंगे। बाय वन गेट वन,कैशबैक या कैश ऑन डिलीवरी की  ऑफर देना होगा। आसान मासिक किस्त की सुविधा मुहेया करनी होगी।
बम को ‘बम बम’ करते हुए बाजार  के शोकेस में करीने से सजाना होगा।

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