अपेक्षा और उपेक्षा के बीच


लोकतंत्र की खासियत है कि उसमें कोई ‘ऑनपेपर’ उपेक्षित नहीं रहता।रहता हो तो भी कहलाता नहीं। भले ही उसकी जिंदगी में अपेक्षित कुछ भी घटित न हो पाता हो लेकिन आस हमेशा बरक़रार रहती है।जो खुद को उपेक्षित कहता दिखे तो मान लें कि वह परामर्श मण्डल का माननीय सदस्य बनने की गति को प्राप्त हो चुका है।  
सिर को छुपाने के लिए एक अदद छत ढूंढता आदमी प्रोपट्री डीलर के सुसज्जित ऑफिस में पहुँच कर बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं पाल बैठता है।डीलर छंटा हुआ होता है। वह उसे आशियाने की सुंदर छटा दिखाता है।फ़्लैट के सामने स्विमिंग पूल वाला सपना  आरओ के चिल्ड पानी के साथ परोसता है।आदमी की आँखें तैराकी करती अप्रतिम सुन्दरियों की कल्पना मात्र से  चमक उठती हैं।बात होते-होते लच्छेदार प्रलोभनों  के झुरमुट और रिबेट के आश्वासनों की पगडण्डी से होती हुई हाऊसिंग लोन पर जा टिकती है।मिडिल क्लास ख्वाहिश हमेशा बैंक के लोन अफसर की टेबिल पर रखे लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा के करीब  जाकर ठिठकती है।अफसर उसे  उसके जिंदा होने के  पुख्ता प्रमाण के साथ वांछित दस्तावेजों की लम्बी फेहरिस्त थमा देता है।इसके बाद वे दोनों हाथ उठाकर ठहाका लगाता है। अपेक्षा उपेक्षा के प्रति बेपरवाह हो जाती है।
घर आकर वह उस फेहरिस्त का गहन अध्ययन करे इससे पहले अपेक्षित सवाल घरवाली की ओर से प्रकट होता है। “क्या रहा अपने घर का?”यह एक शाश्वत सवाल है जिसे सदियों से पत्नियाँ धर्मपत्नी होने की आड़ में पूछती आयी हैं।ठीक उसी तरह जैसे टीवी एंकर पूछते हैं कि अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं।
आदमी जो इत्तेफ़ाक से पति भी है।किराये के घर की खिड़की से पोखर में नहाती हुई भैंसों को निहारता हुआ कहता है,कोशिश कर रहा हूँ। एक न एक दिन ये पोखर पूल में तब्दील होगा  और भैंसे टूपीस वाली बिकनी पहने कैलेंडर गर्ल बन जाएँगी।यह बात वह कहता नहीं,अपेक्षा करता है।उसने सुना है कि सपने हर हाल में रहने चाहियें।भले ही वे मुंगेरीलाल के हसीन सपने टाइप के हों। बड़ा खतरनाक होता है सपनों का मर जाना।
आदमी अपने घर के सपने के साथ, जब भी मौका मिलता है, बैंक के लोन वाले अफसर के पास जाता है। वह अफसर की ओर बड़ी अपेक्षा से देखता है।अफसर उपेक्षा प्रदर्शित करता हुआ अपने लेपटॉप पर पोगो या कैंडी क्रैश खेलता रहता है।अपेक्षा और उपेक्षा एक दूसरे के धैर्य का इम्तेहान लेते हैं।बीच- बीच में प्रोपट्री डीलर मोबाईल पर खबर देता रहता है कि अब तो जिम और स्पा का प्रावधान भी हो गया है।वह स्पा के बारे में गूगल सर्च से टेक्स्ट और इमेज़ की समस्त जानकारी जुटाता है और मुदित हो जाता है।  
तमाम प्रकार की उपेक्षाओं के मध्य जनता  की अपेक्षायें चीन की एलइडी बल्बों वाली रंग-बिरंगी झालर झिलमिलाती रहती है।जलबुझ करती है।तयशुदा पैटर्न में रंग बिखराती है।दोनों शब्द  एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।सिक्का चाहे खोटा हो,पर होते उसके भी दो पहलू ही हैं।अब उसे  कोई अपेक्षा कहे या उपेक्षा, इससे हमारे लोकतंत्र की सेहत पर असर ही क्या पड़ता है।


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