सरकार का विदेश जाना और जनता का नकचढ़ापन


सरकार से जनता की अपेक्षाएं निरंतर बढ़ती जा रही है।अपेक्षाओं का यह विस्तार वैसा ही है जैसे घर में आने वाली बहू को लेकर अकसर ससरालियों का होता है।यह होना शाश्वत है। महिला सशक्तिकरण की तमाम मुनादियों के बावजूद है।मुल्क में बढ़ती असहिष्णुता के बीच है।बीचों बीच है।प्रजा से राजा के असंवादी होते हुए भी है।
सरकार घुमक्कड़ है।वह लगातार गतिमान रहती है।उसकी गति किसी कम्पनी के सेल्समैन-सी है।सेल्समैन स्थान स्थान पर घूम घूम कर अपना माल खपाता है।।सबको पता है कि कुशल सेल्समैन कभी खाली हाथ घर नहीं लौटते।वे वापस आते हैं तो यात्रा में मैले हो गये कपड़ों के साथ बच्चों के लिए रेवड़ी गज्जक या लौलीपौप लेकर जरूर आते है। बच्चे उसे पा मगन हो जाते हैं।तब घरवाली पूछती है कि सबके लिए लाये ,मेरे लिए क्या लाये। सेल्समैन इसे सुन पति में तब्दील हो जाता है। भावविभोर हो कहता है-तुम्हारे लिए मैं हूँ न। पत्नी नाक सिकोड़ती है।वह बैग में गूदड़ बनी पतलून की जेब से रोल्ड गोल्ड का रत्नजड़ित हार निकाल कर दिखाता है। पत्नी की नाक फड़फड़ा उठती है।कोई नहीं जानता कि उसकी नाक प्रेमभाव से फडकी या छींकने के पूर्व तैयारी के रूप में।
सरकार विदेश प्रवास पर है।जनता झींक रही है।उसे  नहीं पता कि वह उनके लिए सात समन्दर पार से क्या लाने वाली है।वह सोच रही है कि काश उनके लिए वहां से परस्पर रिश्तों की थोड़ी गर्माहट ही ले आयें।वहां के किसी बगीचे से वैचारिक सदाशयता की हरीतिमा ले आये।विलायती गाय के दूध से बनी रबड़ी या छेने के रसगुल्ले ले आये।कुछ न कुछ लेकर आयें जरूर।केवल पूँजी निवेश का ढपोर शंख फूंकते न चली आये।वे वहां से झुनझुने न लायें।अभी किसी राज्य में चुनाव सन्निकट भी तो नहीं है।
जनता बड़ी आस के साथ सरकार की घर वापसी की बाट जोह रही है।उसे उम्मीद है कि वह इस बार कोहनूर हीरा लेकर आएगी।इक्कीस ग्राम का हीरा लाने में अधिक बोझ भी नहीं ढोना पड़ेगा।  
जनता की उम्मीद और हौसले बढ़ते जा रहे हैं।वह सेल्समैन की घरवाली नहीं ,जो रोलगोल्ड से बहल जाए।वह कोहनूर ऐसे मांग रही है जैसे लोग पड़ोसी के घर से दही ज़माने के लिए जामन मांग लिया करते हैं।
जनता अब नकचढ़ी हो चली है।

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