पनामा पेपर्स का लीक हो जाना
पनामा पेपर्स के लीक
हो जाने की बड़ी खबर आई है।एक वक्त था जब लोगों के जेब में टंगे पैन स्याही छोड़
देते थे।तब जेब के दायें –बाएं अमूर्त कलाकृति बन जाती थी।कहा जाता है कि दुनिया
की अनेक कलाकृतियाँ इसी तरह के लीकेज के दुर्लभ संयोग से अस्तित्व में आयीं।लेकिन
अब मामला कलम के नहीं पेपर के लीक होने का
है इसलिए मसला जरा जटिल है।यह तो सुना था कि पेपर पर दर्ज इबारतें चुगलखोर होती
थीं पर पेपर तो अपने आप बेहद निरीह माने
जाते रहे हैं।पेपर फडफडाते तो सुने गये थे लेकिन उनकी वाचालता की कोई बात कभी नहीं
उठी।
पनामा में जो पेपर
लीक हुए हैं ,वे साधारण पेपर नहीं हैं।उन पर दर्ज नाम कद्दावर हैं।महानायक,अप्रतिम
सुंदरी से लेकर अपने तमाम ताकतवर थैलीशाहों और तानाशाहों से लेकर तमाम गॉडफादर टाइप तक के नाम इसमें हैं।इन उज्ज्वल नामों के आगे स्वर्णिम राशियां लिखी है,जगमग करती। सवा अरब के
देश में से सिर्फ पांच सौ नाम इसमें हैं।इस बात पर चाहे तो मुल्क की जनता कम से कम
एक दशक तक रह-रह कर शर्मिंदा टाइप की हो
सकती हैं।
आम आदमी पनामा के
बारे में ज्यादा से ज्यादा यह जानता है कि इस नाम का एक हैट हुआ करता है।वह हैट
जिसे हाथ की सफाई दिखाने वाले जादूगर परिंदे निकाल कर उड़ाते हैं।पुराने ज़माने जिसे पहनकर खलनायक बड़े अंदाज़ में खिसियानी हंसी हँसता
था।जिसे कुछ लोग अपरिहार्य स्थिति में टोकरी बना लेते थेऔर झोला न होने की स्थिति
में इसमें बाज़ार से खरीदे गये आम अमरुद धर
लिया करते थे।तब इस हैट के लीक हो जाने का कोई खतरा नहीं रहा होगा।
बुद्धिमान लोगों को
पता है कि पनामा नाम की एक नहर हुआ करती है।जिसमें जलपोत चलते हैं।यह वनस्पति
,मछलियों और तितलियों के बाहुल्य वाली जगह है।लेकिन यह किसी को पता नहीं था कि यह
टैक्स लुटेरों का अभ्यारण्य भी है।इससे भी
बड़ी बात, यहाँ काले धन को धो पोंछ कर धवल बनाने का बाकायदा ड्राईक्लीनिंग का धंधा चलता है।यहाँ से कुछ पेपर लीक क्या हुए
पनामा तो रातोंरात लगभग कुख्यात ही गया।बदनाम भले हुआ पर स्वनामधन्य हो गया।अब तो
कहने को जी चाहता है कि पनामा में धन टिकाने वालों की बात ही कुछ और है।अनेक लोगों
के लिए पनामा में रकम खपा पाना किसी खूबसूरत स्वप्न के साकार हो जाने जैसा हो गया
है।
पनामा में हिफाजत से
रखे पेपर अचानक फ़रार क्या हुए तमाम उजले चेहरों की कलई ही खुल गयी।सात तालों में
हिफाजत से रखी इन मान्यवरों की साख राख हो गयी।सब जान गये कि काले धन के मामले में
सारे मतवाद बजारवाद के साथ बड़ी आसानी से हिलमिल जाते हैं।वाम वाला दक्षिण पंथी के बगलगीर होकर मुस्कराता है तो खांटी
सेक्युलर कन्फर्म कम्युनल से तपाक से हाथ मिलाता दिखता है।मानना होगा कि बाज़ारवादी
पूँजी का अपना धर्म,संस्कृति और एक अदद पनामा भी होता है।
पनामा पेपर्स के
जरिये जिनके नाम आये तो आये लेकिन जिनके नहीं आ पाए उनकी तो सामाजिक प्रतिष्ठा ही
पूरी तरह मिट्टी में मिल गयी। पूरी मट्टी पलीद हो गयी उनकी।बनी बनाई इज्जत पर बड़ा-सा
सवालिया निशान लग गया है।
अब तो यही लग रहा है
कि इन पनामा वालों को शायद कोई काम ठीक से करना आता ही नहीं।जब पेपर लीक किये ही थे
तो उसमें ऐसी कोताही तो न बरतते।अंतर्राष्ट्रीय बहुजनहिताय की तर्ज पर समस्त नामों
को उजागर करते।पेपर लीक करने का भी अपना सौंदर्यशास्त्र और सलीका होता है।
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