मैकमोहन ,लाइन और चीन


एक समय की बात है ।  मैकमोहन नाम का एक दढ़ियल आदमी हुआ करता था । वह पहले जन्मा या उसकी दाढ़ी ,इस पर उसी तरह का अनसुलझा विवाद है जैसे  अंडा पहले आया या मुर्गी या फिर चीन पहले अस्तित्व में आया या सीमा रेखा को लेकर तनातनी । लोग उसे  सांभा के नाम से जानते थे । उसका सरदार उसे अरेओसांभा के नाम से पुकारता था । वह हमेशा एक पहाड़ी पर गुमसुम बैठा  रहता था ।  कहा जाता है कि वह हरदम एक ही गाना गुनगुनाता रहता था ,’दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ ,बाज़ार से निकला हूँ खरीददार नहीं हूँ’ । बाद में पता चला कि वह वहां बैठ कर चीन की सीमावर्ती किसी कस्बे के बाज़ार को निहारता और किसी सुदर्शना पर  ‘लाइन’ मारता था । कालांतर में उसी लाइनको मैकमोहन लाइन कहा जाने लगा ।
मैकमोहन द्वारा खींची गई लाइन भावनात्मक टाइप की थी सो उसकी नापजोख कभी ठीक से नहीं हो पाई । उसकी लाइनगरीब की जोरू बन गई जिससे हर कोई हंसी ठट्ठा करने लगता । चीन ने कह दिया है कि इस तरह की कोई लाइन-वाइन नहीं है । यदि कभी ऐसी कोई लाइन रही होगी तो उसे मैकमोहन भगा कर अपने घर ले गया होगा ।
चीन को न मैकमोहन दिख रहा है न उसकी लाइनउसे केवल अपने माल को खपाने लायक विशाल बाज़ार दिख रहा  है  । उसने अपने साम्यवाद को इतना लचीला बना लिया है कि वह चायनीज सामान की तरह ड्यूरेबल हो या न हो पर किफायती इतना है कि हर जेब के अनुकूल बन गया  है। उसका  वामपंथ फोल्डिंग छाते की तरह  है कि बटन दबते ही उपयोग के लिए तन कर तैयार हो जाता है ।
चीन ने खुद को बाज़ार की मांग के हिसाब से ढाल लिया है लेकिन मैकमोहन यह काम समय रहते नहीं कर पाया । वह केवल गब्बर के सवालों के जवाब देने में लगा रहा । गब्बर पूछता कि सरकार हम पर कितना ईनाम धरे है तो वह तुरंत बता देता ,पूरे पचास हज़ार । उसने यह  कभी नहीं बताया कि वह पचास हज़ार रुपये की नहीं येन की बात कर रहा है  । यदि उसने यह किया  होता तो  उसकी चीनी लाइन की शिनाख्त प्रगाढ़ हो गई होती  और गब्बर का आतंक चीन तक फैले होने की पुष्टि हो जाती ।
चीन को सिर्फ बाज़ार की सूझती है, उसे मैकमोहन और उसकी लाइन से जुड़ी  गाथा से क्या लेना देना ? वैसे भी धोखे में रख कर पड़ोसी के साथ  छल करना चीन की पुरानी आदत है । अपनी बात से मौका देख कर पलट जाना उसका नैसर्गिक स्वभाव है । उसके भीतर विस्तारवाद की दावानल है । वह मैकमोहन को देख कर भी नहीं देखना चाहता । वह उसकी लाइन के प्रति भी  उपेक्षा का रवैया अपनाये है ।
चीन को नहीं पता कि मैकमोहन को यदि गुस्सा आ गया तो वह अपनी लाइन के साथ मिल कर उसके यहाँ के उत्पादित सामान के बहिष्कार का बिगुल बजा देगा । वह उसके सामान के विरोध में  देशव्यापी बाज़ार में लाइन खींच देगा ।
अभी समय है । मैकमोहन लाइन की महत्ता का स्वीकार करने में ही चीन की भलाई है । वरना गब्बर को कहना पड़ेगा कि ‘अरेओसांभा’ जरा अपनी बंदूक उठा कर  निशाना लगा तो इसकी खोपडिया पर ।  


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