योग, योगा ,आर्यभट्ट और हॉट ब्रांड


योग का मतलब होता है जोड़,जिसे अंग्रेजी में उसी तरह एडिशन कहते है जैसे पहाड़े को टेबिल ।  योग अनेकार्थी शब्द है । योग जब योगा बनता है तब इसमें से दिव्य प्रकाश प्रस्फुटित होता है। योगा जब किसी अनिंद्य सुंदरी के दैहिक सौष्ठव के सान्निध्य में प्रकट होता है तब इसकी छटा नयनाभिराम हो जाती है । देशज पाठशालाओं में नन्हें -नन्हें बच्चों के कान उमेठ कर उन्हें संख्याओं का जोड़ना इस उम्मीद के साथ सिखाया जाता रहा है कि इनमें से कोई  एक दिन आर्यभट्ट बनेगा । अलबत्ता पब्लिक स्कूल वाले बच्चों के कान नहीं उमेठते ,वे सिर्फ अविभावकों की जेब का दोहन करते हैं। वे किसी को आर्यभट्ट नहीं बनाते ,वे उन्हें मल्टीनेशनल्स के लिए किसी घोड़े की तरह सधाते हैं। बच्चों द्वारा गणितीय योग सीखते हुए सदियाँ बीती लेकिन उनमें से एक भी आर्यभट्ट तो न बना ,वे अधिकतम बड़े धन्नासेठों की दुकानों के पुरजे या प्यादे जरूर बन गए।  पर कसरती योग  बाज़ार का  हॉट ब्रांड अवश्य  बन गया ।  उससे  बाज़ार को नई ऊर्जा और सूत्र मिला –करो -करो ,करने से होता है ।
योग के बारे में हालाँकि कहा यह जाता है कि इसके साथ जब तक ध्यान न जुड़ा हो तब तक यह अकारथ रहता है।  जब इसके साथ ध्यान का योग होता  है तब यह मारक जुगलबंदी(डैडली कम्बिनेशन) बन जाता है । वैसे विद्वान  यह भी कहते रहे हैं कि करने से ध्यान नहीं हुआ करता । जब तक कुछ करने की ललक बाकी  है , तब तक ध्यान नहीं बस दुकानदारी होती है। यदि वाकई ध्यान करना है तो इसे करने के चक्कर से मुक्ति पाओ ।  
योग सूर्य नमस्कार करने की बात करता है और यहीं से सारी दिक्कत शुरू होती है।  ध्यान कहता है कि प्रणाम ,नमस्कार ,सलाम आदि की औपचारिकता त्याग कर अपनी आती -जाती सांसों में थिर हो जाओ । राजनीति कहती है कि कुछ भी करो या न करो ,पर  हर जरूरी -गैर जरूरी मुद्दे को लेकर मुखर बनो  ।  बात-बेबात  पर ताल ठोक कर या तो लड़ने पर आमादा हो जाओ या कीर्तनकार बन जाओ । एक दूसरे पर खूब कीचड़ उछालो या फिर मजीरे बजाओ।  गाओ खुशी के गीत गाओ। गाते बजाते योगाभ्यास भी करते जाओ।  अपनी आवाज़ इतनी बुलंद करो कि समस्त तार्किकता धूल का बगूला बन जाये ।
यह बात शतप्रतिशत सही है कि योग या कोई अन्य प्रकार काम करने से होता है । उंगली पर जोड़ों या मन के केलकुलेटर पर ,जोड़ तभी सही लगता है ,जब उसे एकाग्रचित्त हो स्थापित प्राविधि से किया जाता है । गणित मनचाहे बदलाव की इजाजत  नहीं देता । सदियों से योग विधिवत होता आया है । ध्यान की कोई तकनीक नहीं । यह एकदम तरल होता है । जो इसके साथ बह लिया वह योग ,वियोग और भोग की सीमा से परे निकल  गया ।
योग करना है तो इसे करो क्योंकि यह केवल होता तो करने से ही  है । बाज़ार को ध्यान जैसी कर्महीनता नहीं चाहिए । ध्यान रहे ,बाज़ार को आर्यभट्ट के पुनर्जन्म की आस नहीं ,चूरन ,चटनी, जैम, जैली ,शरबत ,उबटन ,अंजन ,मंजन और ब्यूटी पार्लर वाला ब्रांडेड योग और योगा चाहिये ।

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