आप और दूर की कौड़ी
दिल्ली में आप ने झाड़ू पछाड के जरिये सबको चारों खाने चित्त कर दिया ।
अब वह इस स्थिति में है कि चित्त भी उसकी और पट भी उसकी । चारों ओर जयजयकार हो रही है । जीतने वाले तो
जीतने वाले ,पटखनी खाने वाले भी इस जैकारे
में शामिल हैं । परस्पर विरोधी लोग एक दूसरे से गलबहियां करते कह रहे हैं –मुबारक
हो जी । जी सर जी ,दिली मुबारकबाद । मफलर ने कीमती सूट को हरा दिया । सादगी गरिमामय
हुई । आम आदमी की जीत गई । राजनीतिक दांवपेच
हार गए । कोई दीवाना पुरजोर आवाज़ में गा रहा है कि बड़बोलापन हार गया । जानकार लोग उलझन में हैं । वे समझ नहीं पा रहे कि इस जंग में वाम
विचार की फतह हुई या दक्षिण पंथ की या फिर मध्य मार्ग की फतह हुई । उनकी बौद्धिकता
की साख दांव पर लगी है ।
एक बात तय है कि जीत तो हुई है और वह भी एकतरफा हुई है । इस कदर हुई
है कि हारने वाले ढूंढे नहीं मिल रहे । हराने वाले अंगूठों को टिली लिली झर्र करने
के लिए उपयुक्त लक्ष्य नहीं मिल रहे । तरकश में रखे व्यंग्य बाण निठल्ले बैठे कसमसा रहे हैं । आत्मचिंतन वाले दिनन के फेर को
निहारते हुए मुहँ सिले उदास बैठे हैं । उनके लिए दिल्ली एक बार फिर दूर रह गई है ।
वह हरियाणा के बार्डर पर सस्ती दारू के सरकारी ठेके पर सुकून और उम्मीद ढूंढ रहे
हैं । भक्तगगणों की फैक्ट्री में बने चुटकलों के लिए बाजार से ग्राहक नदारद हो गए
हैं । उन्होंने ये चुटकुले फिलवक्त गोदाम में रख दिए हैं ताकि वक्त जरूरत काम आयें
और सनद रहे । वैसे भी राजनीतिक चुटकुले कभी आब्सलीट
(निष्प्रयोज्य ) नहीं होते । कोई नहीं जानता कि इनकी जरूरत कब आन पड़े । उम्मीद एक
जिन्दा शब्द है ,यह कभी बासी नहीं पड़ता ।
राजनीति अपने लिए निरंतर नए प्रहसन गढ़ती है । इसमें मसखरों के अलावा सारे किरदार बदलते रहते हैं । नायक
खलनायक हो जाते हैं और विलेन मसीहा बन जाते हैं । लेकिन विदूषक कभी नहीं बदलते वे
नवीनतम भावभंगिमा के साथ सदा उपस्थित रहते हैं । दर्शकों को ये इसीलिए भाते हैं
क्योंकि यह हमेशा जिंदगी में हँसने हंसाने
के लिए गुंजाइश बनाये रखते हैं । वे कभी थक कर नहीं बैठते । कभी नहीं ऊँघते । पछताने
के चक्कर वक्त खराब नहीं करते । उनके लिए रंगमंच पर स्पेस की कमी कभी नहीं पड़ती ।
दिल्ली वाले कह रहे हैं कि आप जीत गए । बधाई हो जी बधाई हो ,आपके यहाँ
आप आये हैं । दिल्ली से बाहर रहने वाले इस पहेली को ठीक से
समझ नहीं पा रहे । वे सोच रहे हैं कि इतनी बड़ी तादाद में वहां आप आये हैं तो क्या
उनमें से एकाध दिल्ली से बाहर निकल कर रोडवेज की बस ,ट्रेन , टैम्पू या डग्गामार
जुगाड़ में बैठ कर उनके यहाँ भी एक न एक दिन जरूर आयेंगे ? वे आयें तो लाइफ बन जाये । वे अपने साथ मुफ्त की
वाईफाई लायें या न लाएं लेकिन एक अदद आस तो लेकर आयेंगे ही । आस बड़ी चीज होती है। आस की हरी मखमली घास पर टहलता हुआ लोकतंत्र सदा
जिन्दा और स्वस्थ रहता है ।
दिल्ली वाले इस बार आपके लिए दूर की कौड़ी चमकीली धूप और हरी दूब लाए
हैं ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें