झाड़ू फिर गई


बापू ने कहा था कि अपनी गलती को तहेदिल से स्वीकार कर लेना झाड़ू लगाने के सामान है, जिससे सतह साफ़ और चमकदार हो जाती है ।हालाँकि आजकल बापू की सुनता कौन है लेकिन उनकी कही बातें न चाहते हुए भी अकसर याद हो आती हैं ।दिल्ली में बहुत से लोगों की उम्मीद पर इस अंदाज़ में झाड़ू फिरी कि राजधानी एकदम क्लीन हो गई और तमाम छंटे हुए रणनीतिकार इस तरह ‘क्लीनबोल्ड’ हुए मानो वर्ड कप  के प्रेक्टिस मैच में बनाना रिपब्लिक ने  फाइव स्टार खिलाडियों से युक्त टीम इण्डिया को हरा दिया हो ।
बापू का कहा माना होता तो ये दिन न देखना पड़ता। अपनी मूर्खताओं का पता करके समय रहते उन्हें बुहार दिया होता तो इस तरह दूसरों से झाड़ू लगवाने की नौबत ही क्यों आती। जो अपना घर खुद स्वच्छ रखते हैं उनके घरों में परायी झाड़ू से सफाई करने की कोई जुर्रत नहीं करता।
अब झाड़ू जादुई कालीन बन चुकी है । इस पर पसर कर लोग सत्ता के सातवें आसमान तक पहुंचा गए हैं । वह अलादीन का वह करामाती चिराग बन गई है ,जिसे जमीन पर घिस कर फर्माबरदार जिन्न को बुलाया जा सकता है ,कभी भी कहीं भी ।झाड़ू अब खुल जा सिम -सिम वाला कोडवर्ड बन गई है ,जिससे खजाने से भरी गुफा का दरवाजा तो खुल जाता है लेकिन जान के लिए जोखिम भी बढ़ जाता है ।
बापू बेचारे जाने क्या - क्या कहते चले गए । उन्होंने कहा सरल बनो सहज बनो और लोग सजते संवरते और जटिल से जटिलतम होते चले गए ।उन्होंने कहा कि ईमानदारी से अच्छी कोई  नीति नहीं  ,लोग अनीति के जरिये सबसे अधिक उजले चेहरे वाला मुखौटा लगा कर हाज़िर होते गए। बापू ने कहा सदाचार ,लोगों ने सुना कदाचार ।उन्होंने जो कहा उसे सिर्फ कहा नहीं वरन अपने जीवन में उतारा ।लोगों ने जो कभी किया नहीं उसे अपनी सेल्फी में उतार कर निश्चिंत हो चले। अत्याधुनिक तकनीक के सहारे असत्य को सत्य में कन्वर्ट कर दिया ।अपने ऊपर इतने आवरण चढा लिए कि उनकी कुरूपता जगजाहिर  हो  गई ।
दिल्ली में झाड़ू आ गई ।उसका जादू वोट बन कर बोला ।बड़े-बड़े धुरंधर धराशाही हो गए ।छोटे छोटे प्यादे जीत गए ।यह सबको पता है कि प्यादे भले ही मंथर गति से चलते हों लेकिन वे टेढ़ी चाल चलने वाले घोड़ों को हरा देते हैं । एकजुट प्यादों ने चुनावी बिसात में दिग्गजों को मुहँ की खिला दी ।बिना शह दिए ही मात दे दी  ।
झाड़ू ने चुनावी गणितज्ञों की पोल खोल कर रख दी ।दस हज़ार वॉट का शाॅक ट्रीटमेंट  दे दिया ।सावधान होने का मौका दिए बिना विश्राम की मुद्रा में ला दिया ।आत्ममंथन के लिए सिर खुजाने के लिए फुर्सत तो दी लेकिन नाखून कतर दिए ताकि वे अपनी खोपड़ी चोटिल न कर लें । झाड़ू ने साधारण अंकगणित को बुहार कर हाशिए पर पटक दिया और उसकी जगह बीजगणित के नए सूत्र गढ़ दिए ।अपने लिए इतिहास रच  दिया ।इतिहास के पुनर्पाठ के लिए पराजित योद्धाओं के रूप में पाठक उपलब्ध करा दिए।
दिल्ली में झाड़ू ने हाहाकार मचा दिया है ।उसने तमाम पूर्व अनुमानों को बुहार कर वक्त के डस्टबिन में डाल दिया है ।उसने बता दिया है कि साल में केवल लू लपट वाला मई का महीना ही नहीं आता इसमें सर्दगर्म फरवरी भी आती है और फरवरी किसी का लिहाज़ नहीं करती। मनमानी करती है ।इसके आगे किसी की  नहीं चलती ।
@नई दुनिया ११ फरवरी १५ को प्रकाशित 

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