मुंह फुलाने की वजह


लालकिले से भाषण हो गया।हर बरस ऐसा ही होता है।इस बार अनेक समानांतर भाषण भी  हुए।एक से बढ़ कर एक।तब यह देशज कहावत बड़ी याद आई-शेर का भाई बघेरा,एक कूदे तीन दूजा कूदे तेरा।एक भाषण तो फिर भी डेढ़ दो घंटे चलने के बाद थम गया था लेकिन तमाम किस्म के अन्य भाषण उपसंहार तक पहुंचे बिना अभी तक जारी हैं।यह सोशल मीडिया का ईजाद किया सोप ऑपेरा है। इस बीच साक्षी और सिन्धु ने ओलम्पिक में देश का नाम रोशम कर दिया। 'बहरहालके उपसर्ग के बाद रुके हुए भाषण फिर शुरू हो लिए जैसे टीवी पर कमर्शियल ब्रेक के बाद धारावाहिक पुन: चल पड़ें  ,अपनी गति से।अपनी धुन में रोते कलपते और रह रह कर चीत्कार करते ।
लालकिले वाले भाषण के साथ साथ जो वनलाइनर ट्रौल’ कर रहे थे,वे कुछ इस तरीके के थे जैसे फर्स्ट डे फर्स्ट शो में फिल्म देखने आया हुआ कोई फिल्म समीक्षक टाइप का  अतिउत्साही दर्शक आगे से आगे फिल्म के कथानक का अंदाज़ा लगाता और आवाज़-ए-बुलंद उसका ऐलान करता  चले।हर मामले में अटकल लगाना हमारा नेशनल पासटाइम है जिसमें  हम पूरी मारक भावना के साथ खिलवाड़ करते हैं.वस्तुतः यह वह  खेल है जिसमें बंद लिफाफे में रखे अलिखित खत का  मज़मून भांपा जाता है। सिर्फ भांपा ही नहीं जाता ,उसकी व्याख्या भी की जाती है. यह खेल यदि ओलम्पिक में रहा होता तो हम कभी का रियो से गोल्ड मैडल लेकर स्वदेश आ गये होते।इसमें हमारे समक्ष टिकने वाला कोई न होता.
इतना  लंबा चौड़ा भाषण सुनने के बाद भी कुछ पारखी कह रहे हैं कि लो जी,अपने भाषण में मान्यवर ने सोलर कुकर,गोबर गैस प्लांट और चाइनीज़ मांझे के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं।कोई कह रहा है कि उन्हें कम से कम आलू टिक्की बर्गर के बढ़ते दामों और ब्रांडेड पिज्जा में घटते कुरकुरेपन पर तो कुछ न कुछ कहना ही चाहिए था।उन्होंने गिलगिट तक का जिक्र कर दिया तो क्या उन्हें रंग बदलने वाले गिरगिटों की बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता जगजाहिर नहीं करनी चाहिए थी?बलूचिस्तान की बात के साथ उन्हें अलूचे की खेती और उसके समर्थन मूल्य पर भी अपनी राय जनता के सामने रखनी चाहिए थी.सबके पास कोई न कोई चिंता है और मुंह को गुब्बारे की तरह फुलाने के लिए तमाम पुख्ता वजह।
भाषण के कंटेंट को लेकर कुछ तो इस तरह उदास और उत्तेजित हैं जैसे उनके टिफिन को कोई दुष्ट कौआ चुपके से ले उड़ा हो।जैसे किसी ने बिना पेंच लड़ाये ही उनकी आसमान चूमती  पतंग की डोर की हत्थे से काट दिया हो।ऐसे भी लोग हैं जो इस कदर कुपित है कि यदि  उनका बस चले तो मान्यवर को सफाई का मौका दिए बिना खड़े-खड़े ही बर्खास्त  कर दें।

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