मेरी आतुरता और देशभक्ति के सस्ते विकल्प

स्वतंत्रता दिवस बेखटके चला आ रहा है। जगह-जगह झंडे और डंडे बिक रहे हैं। लोग मोल-तोलकर खरीद रहे हैं। 69 साल के आजाद तजुर्बे से हमने सीखा है कि ठेली पर जाकर सब्जी खरीदो या इलाज के लिए अस्पताल जाओ; गुमटी से पान लगवाओ या बच्चे का बीटेक में एडमिशन करवाओ, मोल-भाव जरूर करो, वरना ठग लिए जाओगे।
हालांकि इसके बावजूद हम अक्सर ठग लिए जाते हैं। वैसे भी, दूध पीते हुए मुंह उन्हीं का जलता है, जो फूंक-फूंककर घूंट भरते हैं। स्वतंत्रता दिवस के बारे में सोच-सोचकर मेरा मन भी न जाने कैसा-कैसा हो रहा है। मुझे पहले तो लगा कि मेरा मन एसिडिटी के प्रकोप से अनमना हो रहा है। कुछ कैप्सूल भी निगले, लेकिन हुआ कुछ नहीं। दिल के भीतर देशभक्ति के भाव वैसे ही उमड़ रहे हैं, जैसे कोल्ड ड्रिंक में नमक मिलाने पर झाग। मैं भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कुछ कर गुजरने के लिए आतुर हूं। मेरे पास सीमित विकल्प हैं।
मेरे पास सबसे सस्ता या लगभग मुफ्त का विकल्प तो यह है कि वाट्सएप के जरिये दोस्तों को देशप्रेम से ओत-प्रोत वीडियो या ऑडियो मैसेज भेज दूं। अपने फेसबुक प्रोफाइल पर तिरंगा लहरा दूं। टीवी के सामने बैठकर लाल किले के प्राचीर से आते भाषण को सुनकर आंखों के कोर को पोंछते हुए हथेली पीटूं। इससे फायदा यह होगा कि देशभक्ति के घरेलू प्रदर्शन के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी मिल जाएगा। हर्र लगे न फिटकरी, रंग हो जाए तिरंगा।
मैं देशप्रेमी हूं, इसमें तो कोई शक नहीं, मगर वह प्यार भी क्या, जो छलकता हुआ दिखाई न दे? जमाना ही ऐसा है, जिसमें जंगल में नाचने वाले मोर को भी नृत्य कला का प्रमाण देना पड़ता है। मैं असमंजस में हूं। इस मौके पर देशभक्ति के नारों का उद्घोष करने को जी चाहा, तो मैं क्या करूं? क्या जय हिंद, जय भारत या वंदे मातरम जैसे नारे लगा सकता हूं? मैंने जनता से सोशल मीडिया के जरिये पूछा है कि वे बताएं कि इस तरह के नारों को लगाने से मेरी सेक्युलर छवि पर कोई विपरीत असर तो नहीं पड़ेगा? देखते हैं कि देश की प्रबुद्ध जनता इस बारे में क्या कहती है।

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