शराफ़त नहीं है फिर भी....
शराफ़त के टोकरे को
ताख पर रखे पर्याप्त समय बीत गया है।इस बीच मेरे घर के पिछवाड़े बहने वाला नाले में इतना गंदा पानी बह चुका है
कि अब इसके भीतर की तरलता समाप्त हो चुकी हैं।यही हाल शराफ़त का भी है,यह लोकाचार
में विचरते विचरते इतना ठोस हो गयी है कि एकदम ठस्स हो चली है।इसी किसी वजह के
चलते रुपहले पर्दे की बेमिसाल नृत्यांगना ने कहा था –शराफ़त छोड़ दी हमने। यह क्रांतिकारी
बयान उन्होंने ठुमकते हुए दिया ,तब दर्शकों
ने सिनेमाघरों में इतने सिक्के इस कदर उछाले कि उसका यह वक्तव्य, जो दरअसल एक
प्रस्ताव भी था,सिक्काबंद खनक के साथ ध्वनिमत से पारित हो गया।तब से आज तक जो
शराफ़त यहाँ वहां कभी कभार दिख भी जाती है,वह वास्तव में शराफ़त नहीं,उसकी डुप्लीकेट
है।अनुकृति नहीं डुप्लीकेट ,जैसे महात्मा बुद्ध की चीन में बनी प्रतिमा ,जिसे हम
बेहद आदरभाव से लाफिंग बुद्धा कहते हैं।
चुनावी समय में चारों
ओर शराफ़त ही शराफ़त दिख रही है जैसे कभी हर शहर गाँव कस्बे की दीवारों पर बन्दर छाप
लाल दंत मंजन के इश्तेहार ही इश्तहार दिखते थे।जैसे मुगली घुट्टी 555 के बगलगीर
शराफ़त से भरी किलकारी मारता नवजात शिशु रहता था ।जैसे कल्लन पतंगसाज की डोर इतनी
शरीफ़ होती थी कि कोई पतंग आसपास दिखते ही खटाक से टूट जाती थी ताकि पेंचबाजी से
बची रही।मारधाड़ से खुद को बचा ले जाना भी शराफ़त का प्रदर्शन ही है।अब तमाम तरह की
शराफ़त और शरीफ़ पडोसी मुल्क में रहते हैं।बहुतायत में पाए जाते हैं।टेरेरिस्ट से
लेकर रहनुमा तक सभी शरीफ़ हैं।
नायिका ने शराफ़त छोड़ने
की संगीतमय उद्घोषणा की तो पूरे मुल्क ने भारी मन से ही सही पर उसका अनुसरण किया।एक
बार जब शराफ़त तिरोहित की तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।बाद में कभी दिल में
भावुकता उठी तो एकाध खुराफ़ात कर ली और कह दिया कि कृपया इसे ही बाय डिफॉल्ट शराफ़त
मान लिया जाए।वैसे भी शराफ़त वही जो खुराफात में भी मौजूद रहे।माँ बहन की गालियाँ
भी दी जाएँ तो भी उसके साथ आदरणीय प्रिय सौभाग्यवती आदि विशेषण उसके साथ चस्पा रहे।सम्बोधनों
में शराफ़त बनी रहे ,यही काफी है।इससे अधिक शराफ़त को कोई करेगा भी क्या।
जब शराफ़त थी तब भी
दुनिया थी।दुनियादारी थी।दयानतदारी थी।साजिश थीं।बडबोलापन था।शायद भोलापन भी।शराफ़त
का शफ्फाक कारोबार भी।व्यवहार भी।आचार था तो दुराचार भी रहा होगा।असल जिंदगी में न
शब्द की और न ध्वनि की ,किसी की भी कोई मिरर इमेज नहीं होती।एक तरह की शराफ़त दूसरे
तरीके की शराफ़त से बेहद भिन्न होती है।मन्दिर वाली शराफ़त धंधे वाली शराफ़त से फर्क
होती है।टायलेट वाला पवित्रता का भान कसाईबाड़े वाली साफ़ –सफाई जैसी नहीं होता।
शराफ़त एक चिकना
चुपड़ा शब्द है।यह सार्वजनिक त्वचा को चमकीला और दर्शनीय बनाता है।यह हेयर डाई है,
जो आदमी की उम्र को बैकवर्ड मोड में ले जाती है।
शराफ़त न होने के
बावजूद भी इसके अपने आभासी प्रारूप है।बेईमान ठेकेदार और कमीशनखोर अफ़सर के बीच शराफ़त
का झीना सा पर्दा रहता है।चालाक डाक्टर और दवा कम्पनी के काईया सेल्समैन के मध्य
रिश्वत रिश्ता होता है फिर भी शराफ़त भरपूर रहती है।अपने अपने हिस्से की मिल बाँट में कोई कोताही
नहीं बरतता।लेकिन जो कुछ स्याह सफेद होता है ,पूरी शराफ़त के साथ होता है.
पिछली शताब्दी में शराफ़त
छोड़ देने की घोषणा के बावजूद ,किसी न किसी फॉरमेट में शराफ़त मौजूद रही है।ठीक उसी
तरह उपस्थित रही जैसे बाघ के किसी जंगल से
होकर गुजर जाए तो उसकी धमक और तीखी गंध अरसे तक अरण्य में बनी रहे।
शराफ़त भले ही हो या न
हो लेकिन उसके होने की भनक अब भी जब तब मिलती ही रहती है।
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