लोकतंत्र ,हॉर्सट्रेडिंग और दाल भात में मूसलचंद


हमारा बहुत बड़ा मुल्क है।योरोपीय संघ से अधिक उदारमना लोकतंत्र।लोकतंत्र है इसी वजह से यहाँ सरकारें निरंतर चुन-चुन कर बनती रहती हैं।चलती रहती है।हिलती रहती हैं।डोलती रहती है।हिलने-डुलने के बावजूद बाकायदा कायम रहती हैं।सरकार के लोग इधर उधर जाकर लुकछुप कर खुसुर पुसुर करने लगते हैं।हॉर्स ट्रेडिंग होने लगती है।निष्ठाओं के  हाट सज जाते हैं।घोड़े अस्तबल में खड़े-खड़े ही घुड़दौड़ जीतने  और हारने लगते हैं।यह अलग बात है कि बीच–बीच में यत्र तत्र  राष्ट्रपति शासन दाल भात में मूसलचंद के रूप में प्रकट हो जाता है।
जनता दिल थाम कर अदृश्य घोड़ों के करतब देखती है।कान लगा कर  घोड़ों का हिनहिनाना सुनती हैं।बड़े मनोयोग से स्टिंग ऑपरेशन को निहारती है।लेकिन तनिक भी विचलित नहीं होती।उसे हारते -हारते जीत और जीतते -जीतते हार देखने का प्रगाढ़ अनुभव है।फटाफट क्रिकेट ने उसे इसका आदी बना दिया है।सबको यह पता है कि हर अच्छी और बुरी चीज के पीछे अकसर किसी न किसी का हाथ,दैवीय कृपा अथवा रुपहली चरण पादुका का कमाल होता है।
आजकल के घोड़े बड़े फ्लेक्सिबल होते हैं।जिनमें वांछित लचीलापन नहीं होता उनकी टांग टूट जाती है या तोड़ दी जाती है।लचीले घोड़े कभी किसी रेस में पराजित नहीं होते।वही सरकार को बनाने और गिराने के कारक होते हैं।जनतंत्र में जब असमंजस पनपता है तब यही घोड़े खुद को अपने प्राइज टैग के साथ प्रस्तुत कर देते हैं।बिना टैग वाला घोड़ा खच्चर होता है।अपनी पीठ पर दूसरों का बोझ ढोता है।दुर्गम और संकरी पगडंडियों पर धर्मभीरूओं को अपने उपर लाद कर तीर्थाटन कराता है।हांफता है।आस्थाओं की दिव्य गुफाओं के मुहाने तक स्थूलकाय लोगों को लाने- ले जाने का बेगार करता है।
अधिकांश स्थानों पर सरकारें जिद्दी फफूंद की तरह जमी रहती हैं।बड़े मजे से ये चलती  रहती हैं।भले ही गतिमान न हों लेकिन सर्वशक्तिमान हैं।चप्पे चप्पे पर विद्यमान हैं।
वह सरकार भी भला कोई सरकार है ,जिसे हॉर्स ट्रेडिंग और तमाम झंझावातों में खुद को टिकाये रखने की कला न आती हो।

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