गोरेपन की क्रीम और कालापन
होली लगभग आ पहुंची
है।मौसम गरमा गया है।हरेभरे पेड़ों की अच्छी भली रंगत काली हो गई हैं।इनके लिए अभी
तक किसी लवली क्रीम की इजाद नहीं हुई।यदि हो भी गयी होती तब भी इससे क्या होता?हद
से हद पत्तियों का रंग गोरा चिट्टा हो जाता।हरीतिमा तो फिर भी नदारद रहती।जिंदगी
यूँ स्याह सफ़ेद नहीं होती।इसकी इबारतें तभी खुशगवार लगती हैं जब तक उसमें सारे रंग
और शेड मौजूद रहें।एक अतिलोकप्रिय उपन्यास के जरिये पता लग चुका है कि ग्रे के
फिफ्टी शेड्स होते हैं।इसी तरह हर रंग में रंगों की अनेक परतें होती हैं।प्रिज्म
पारदर्शी प्रकाश को इन्द्रधनुषी रंगों में विभक्त कर देता है।
पूँजीगत सोच और
राजनीति के मामले में हम अभी तक सिर्फ दो रंगों में अटके हुए है। धन या तो काला
होगा या सफ़ेद।राजनीति में सरोकार जब भी प्रकट होंते हैं तो सदैव ब्लैक एंड व्हाईट में सामने आते हैं।सांवला
सलोना स्वरुप तमाम मिथकीय गाथाओं में मौजूद होने के बावजूद हमारी स्मृति में गोरी
त्वचा ही रहती है।कारनामे कालिमा से भरपूर होते हैं और मंतव्य हमेशा उजले ही होते
हैं।करतूतें भले काली हों कमीज के कॉलर सफेद होते हैं।
होली के लिए रंग
अनेक होते हैं।लेकिन काले पेंट की डिमांड अपने चरम पर रहती है।इस मौके पर दूसरों
का मुंह काला करने में जो मजा ही कुछ अलग होता है।लाल हरे पीले नीले रंग में वह
आनंद कहाँ? रोजमर्रा के जीवन में अपराध करते हुए कोई रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो भी कहा यही जाता है कि मुहँ
काला हो गया।लेकिन जिसका मुंह कुदरतन श्याम रंग होता है,उनके मुख का क्या होता
होगा।काले पर चाहे जिस रंग की जितनी परत चढ़ाओ वह तो जस का तस रहता है।काले रंग
की महिमा अपरम्पार है।जब तक यह कालापन है
तब तक लवली की उपादेयता और बाज़ार है।
राजनीति में काला
रंग सिर्फ रंग नहीं होता वरन पूर्ण राजनय होता है।यह रंग डराता भी है और ब्लैक इज
ब्यूटीफुल के मुहावरे के साथ रिझाता भी है।डार्क एंड हैंडसम के फैशन स्टेटमैंट के
साथ लुभावने विमर्श का बीज मंत्र भी है यह।हर तरह की कालिमा के साथ श्वेत रंग की उम्मीद
सदा रहती है। इतना सब होने पर भी गोरापन देने वाली क्रीम का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है।
होली के पर्व से ऐन
पहले लवली के जिक्र ने मुल्क की जनता को मुस्कुराने में मजबूर कर दिया है।सोशल
साइट्स पर वनलाइनर के उत्पादकों के समक्ष बौद्धिक सम्पदा की चोरी का खतरा प्रकट हो
गया है।कोई नहीं जानता कि उसकी चन्द शब्दों में की गयी ठिठोली सदन में हुडदंग मचा
देगी और टीवी चैनलों को बैठे बैठाये ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप कुछ अनूठा मिल जाएगा।
रुपहले पर्दे पर ब्रांडेड
बाम और चिपकाऊ एडहेसिव के बाद गोरेपन की क्रीम ने जिस तरह राजनीतिक विमर्श के पटल
पर धमाकेदार आमद दर्ज की है,उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि आनेवाले समय में
गोरेपन वाली क्रीम व्यापारिक सफलता का नया इतिहास रचेगी।नयनाभिराम विमर्श के लिए विचारधारा
की नहीं गोरी काया अधिक जरूरी होती है।मन के
रंग और मकसद को कौन देखता और पूछता है?
निर्मल गुप्त
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