केक में बदलता समाजवाद
नेताजी
पिच्छ्त्तर के होने जा रहे है| उनके समाजवाद का पूरा कुनबा
किसी न किसी रूप में सत्ता के शीर्ष पर या उसके इर्दगिर्द काबिज है| वह भीष्म पितामह की तरह किंग मेकर की अतुलनीय
भूमिका में हैं |हर ओर खुशहाली है| उनके
राज्य में खूब पेन्शन ,भत्ते ,इनाम ,इकराम ,पद और लेपटॉप बंट रहे हैं| अपनों के बीच मुक्तहस्त से रेवडियाँ बांटी और
खायी जा रही हैं|
नेताजी
का जन्मदिन करीब है|सेलिब्रेशन का अवसर है और दस्तूर भी | रामपुर में जोरशोर से उत्सव की तैयारी चल रही हैं |केक बनाने वाले ओवरटाइम
कर रहे हैं | केक काटने के लिए
रामपुरी छुरों पर धार रखी जा रही है | उनके
सामने पूरे पिच्छ्त्तर किलोग्राम का लज़ीज़ केक बनाने की चुनौती है | छुरों पर उसे सलीके से कटवाने का
दायित्व है | महारानी विक्टोरिया के ज़माने की बग्गी आयात होकर सीधे इंग्लेंड से
आ रही है| उसे हांकने वाले घोड़े जाने किस देसी
विदेशी अस्तबल से आयेंगे ? इसी बग्गी में सवार होकर जुलूस की शक्ल में वह
केक काटने के लिए आधी रात को समारोह स्थल पर जायेंगे| कभी आधी रात को मुल्क ने आज़ादी को आते देखा था
अब वह समाजवादी अवधारणा के एक बड़े केक में तब्दील होने और टुकड़े टुकड़े होने
के अभूतपूर्व परिदृश्य का साक्षी बनेगा |
एक ओर समजवादी केक बन रहा है | दूसरी ओर धर्म कम्बल ओढ़
कर रामपाल के रूप में जेल जा रहा है | सेकुलर लोग दोनों मामलों पर अहलादित हैं |
उनके लिए बारात और वारदात दोनों दर्शनीय होते हैं | समाजवादी जी अपने जन्म दिन पर
पन्द्रह किलोमीटर पांच घंटे में नाप कर प्रदेश और अपनी समाजवादी धज को नई दमक
देंगे | धर्म और समाजवाद नए रूप में सामने है |एक का रूप उजागर हुआ दूसरे का कुछ
दिन में हो जायेगा |
समय
बदल गया है अब नेताओं और संतों के कद की शिनाख्त उनके कृतित्व से कम उनके द्वारा
एकत्र किये गए आग्नेयास्त्रों से होती है | बर्थडे पर बनने वाले केक के वजन और
आकार से होती है | केक के जरिये ही नेता का जनाधार विस्तार पाता |कीर्ति चातुर्दिक होती
है|
व्यक्तित्व सुदर्शन बनता है| केक की महक के प्रभाव से जनता के भीतर अपने नेता के प्रति भक्तिभाव
जागता है |केक की सुगंध से नेता सुनामधन्य बनता है |प्रशासन उसके समक्ष
कोर्निस करता है | शासन नतमस्तक होता है | चमचे जलतरंग की तरह बज उठते हैं | नेता
का चेहरा केक के प्रताप से ताजे खिले गुलाब की तरह खिल जाता है |उसके प्रभामंडल में
चाँद सितारे टंक जाते हैं |
एक
समय था जब फ़्रांस की रानी ने वहां की भूखी जनता को रोटी न मिल पाने की हालत में
केक खाने की सलाह दी थी |रानी को पता था कि जनता जब केक खायेगी तभी तो वो विरोध ,धरना ,प्रदर्शन
,निंदा और व्यर्थ की चिल्लपौं छोड़ कर उसकी जयजयकार करेगी| केक में एक खूबी यह भी तो होती है कि उसे खाते
हुआ आदमी एकदम स्वामीभक्त हो जाता है| उसके झबरीली दुम उग आती है जो वक्त जरूरत खूब
हिलती है|
समाजवाद
के उन्नयन और प्रदेश की खुशहाली के लिए जरूरी है कि सही रूप रंग आकार प्रकार और
वजन का केक साल दर साल इसी तरह बनता और काटता रहे| वह
जियें हजारों साल ,हर साल के दिन हों केक समान
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