माननीय बनने का चक्कर
एक
माननीय ने दूसरे माननीय से कहा कि वह उसे एक दो नहीं पूरे सौ करोड़ धन
दे ,वह उन्हें मान -सम्मान ,ओहदा , प्रतिष्ठा ,हनक ,
कनक और वीआईपी स्टेट्स की चमक देंगे |दूसरा माननीय कह रहा है
कि वह अपनी चमक दमक बरक़रार रखने के लिए तत्पर हैं |उसे पाने के लिए वह सब कुछ दे सकते हैं लेकिन
घूस नहीं दे सकते |आखिर उनका भी तो कोई आत्मसम्मान
है |घूस देने का काम आम आदमी करते है ,माननीय नहीं |वे तो जो लेते, पाते या हड़पते हैं ,ससम्मान और साधिकार करते हैं |
यह तो
सबको पता है कि राजनीति के हाट में सब कुछ बेचा और खरीदा जाता है |दिलचस्प बात यह है कि
इस मंडी में खरे से अधिक खोटे सिक्के चलते हैं |यहाँ नयनाभिराम सिद्धांतों के गैस भरे गुब्बारे आसमान में
ऊँची उड़ान भरते हैं |जरा –सी तेज
हवा चली नहीं कि ये गुब्बारे उड़ कर कहीं के कहीं पहुँच जाते हैं |एक्स पार्टी का गुब्बारा वाई पार्टी की छत पर उतर जाता है |कुछ गुब्बारे तो इतने
कुशल होते हैं कि जिस छत पर संयोगवश या दुर्घटनावश जा उतरते हैं उसी पर अपना आधिपत्य
जमा कर जेड पार्टी बना लेते हैं |
माननीय
वही बनता है जो सत्ता के आरामघर तक पहुँचाने वाली हर संकरी गली का रास्ता जानता है |आम रास्ते पर चल कर
अपना गंतव्य ढूंढते लोग हमेशा अटके रह जाते हैं |उनकी महत्वाकांक्षी पतंग को कोई भी काट देता है |जनधन में सदैव ठन ठन ही
रहता है और काला धन गोरा बनने के लिए गोपन खातों की शरण ले लेता है |
यह
बात एकदम सही है कि माननीय कभी अपनी अंतरात्मा से समझौता नहीं करते |उनके भीतर जब कुछ पाने
की लालसा पनपती है तो वे उसे मार्केट रेट पर खरीद लेते हैं |एमआरपी पर माल खरीदना
या बेचना जायज होता है |ऐसा करने से ‘माननीय’ शब्द की गरिमा जस की तस बनी रहती है |मोलभाव करके माल की खरीद फरोख्त भी हो जाती है और आत्मा पर फिजूल
का दवाब भी नहीं बनता |
माननीय
बनना बनाना मिलियन डॉलर या यूरो का व्यवसाय है |राजनीति भी अन्य धंधों की तरह एक कारोबार है |बाज़ार का नियम है कि जो
धंधा लाभप्रद होता है वह कभी निंदनीय या गंदा नहीं होता |दलाल स्ट्रीट पर जो
नैतिकता की बात करता है या दुहाई देता है उसे मार्केट पिटा हुआ मोहरा या आर्थिक व
मानसिक रूप से लगभग दिवालिया मान लेता है |
दो
माननीय विशुद्ध लेनदेन के मसले पर भिड़ रहे हैं लेकिन लड़ रहे हैं बेहद सलीके के साथ |उनके द्वंद्व में भी
अजब एहतियात है ताकि कल जब दुबारा हाथ मिलाएं तो शर्मिन्दा न होना पड़े |एक कह रहा है कि माननीय
जी अपने माननीयपन के विस्तार के लिए सौ करोड़ दे रहे थे |दूसरे माननीय जी कह रहे
हैं कि न उन्होंने किसी को कभी कुछ दिया, न उनसे किसी ने कुछ माँगा |उन्हें तो जीवन में जो भी मिला ऐसे ही प्राप्त हुआ जैसे किसी मुहँ बाये
सोते आलसी के मुख में झड़बेरी का बेर टपक पड़े | जैसे मायूस बिल्ली के भाग्य से छीकें पर रखा
दही बिखर जाये |जैसे लम्बी छुट्टी लेकर गई कामवाली बाई पति से
बीच पिकनिक में अनबन हो जाने के कारण काम पर वापस लौट आये |
मानना
होगा कि माननीय लोग तमाम मतभेदों और मनभेदों के बावजूद एक दूसरे की गरिमा का बड़ा
ख्याल रखते हैं |ये बड़ी सरलता से लाखों करोड़ों के मसले को एक प्रहसन में तब्दील कर
देते हैं |
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