तेरा कुछ ना होगा कालिया!
शोले वाले गब्बर की बड़ी याद आ रही है।उसके रिवाल्वर
में छ: की जगह तीन गोलियां थी।मरने लायक भी तीन थे।तीनों बचे।बचे तो गब्बर हँसा।
बोला,तीनों बच गये। तीनों के तीनों बच गये स्स्स...।वे भी हँसे तो गब्बर ने गोलियां चला दीं।वे मर गये।काम तमाम हो गया।तीनों
को उनकी करनी की सज़ा मिल गयी।झटपट मामला निपट गया।फिल्म हिट हो गयी।
अभिनेता की गाड़ी ने फुटपाथ पर सोते लोगों को ‘हिट’
किया। उन्हें सम्भलने का मौका भी नहीं दिया।सोने वाले चिरनिद्रा में चले
गये।मुकदमा चला।चलता रहा।घिसटता रहा।नये से नये पेंच सामने आते रहे।दांवपेंच चलते
रहे।उठापटक होती रही। दलील दर दलील दी जाती रहीं।नूरा कुश्ती होती रही।न्याय का
हथोड़ा उठा और फिर हवा में ठहर गया।ठहरा तो ठहरा ही रहा।हवा में ठिठका काठ का हथोड़ा
दर्शकों को भरमाता रहा।उनमें से कुछ की तो
साँस ही अटक गयी।रुक-सी गई।रुक-रुक कर चलती रही।न्याय की देवी की आँखें,बंधी हुई पट्टी
के नीचे खुलबंद होती रहीं।निचली अदालत से ऊँची अदालत में मामला सरक आया।पहले सजा
बुली।सज़ा की न्यूज़ ‘ब्रेक’ होने को थी कि न्याय की मुस्तैद कुर्सी ने आनन फानन में जमानत दे दी।सब
कुछ पलक झपकते हुआ।टीवी पर आँख गड़ाये बैठे पारंपरिक रोमांचप्रेमी मनमसोस कर रह गये।न्याय
की यह जल्दबाजी बर्दाश्त नहीं हुई।
दर्शकों को लगता रहा कि कानून के लंबे हाथ अभिनेता के
गले तक अब पहुंचे कि तब पहुंचे।लेकिन नहीं पहुंचे।रुपहले लोगों तक कानून के हाथ
पहुँचते-पहुँचते अकसर यूँही ठिठक जाते हैं।लोकप्रियता का अपना ‘भोकाल’
होता है।ये लोग सदा ‘हिट’ रहते हैं।हिट रहते हैं तो हर हाल में ‘फिट’
रहते हैं। हर व्यवस्था में फिट बैठ जाते हैं।ये चलती हुई गाड़ी में पैर पर पैर रखे
चैन से पसरे ऊँघते हैं।इनकी गाड़ी खुद-ब-खुद चलती है।जेसिका लाल गोली लगने से मरी
थी।शुरू में यही कहा गया था कि उसे किसी ने नहीं मारा।दरअसल वह बेचारी तो सीधी
सादी गति से जाती गोली के सामने पड़ गई थी।जिसने भी यह बात सुनी,उसी ने मुस्करा के कहा था-च्च...च्च...बेचारी।
अब भी यही बात सामने आई है कि नींद में चलते लोग
फुटपाथ पर खरामा-खरामा चलती गाड़ी के चक्के के नीचे नासमझी के चलते आ
गये।च्च...च्च... बेचारे!
अंततः कुर्सी ने गहन चिंता के साथ फैसला
सुनाया।अभिनेता ससम्मान बरी हुए।उनकी रिहाई बाध्यता थी।जनभावना के अनुरूप थी।अभिनेता
जी को सशरीर अदालत में आना पड़ा,यह न्याय की जीत है,इससे यही साबित हुआ।उनको बुलाना
न्यायिक रूप से बाध्यकारी था,वरना न्याय को पुड़िया में बाँध कर उनके बंगले पर भी
भिजवाया जा सकता था।अभिनेता के तमाम पंखे (फैन) बिना करेंट के हर्षातिरेक से
फड़फड़ा उठे।सबको पता लगा कि हर्ष की अतिशयता से विद्धुत ऊर्जा उपजती है।
गैर इरादतन का मसला तो मजे-मजे में सुलझ गया।अब काले
हिरण की इरादतन हत्या का मामला बचा है।
कोई उनकी मृतात्मा से यह न पूछे कि तेरा क्या होगा
कालिया।श्याम वर्ण को कालिया कहना ‘रेशियल’ कमेन्ट है।मृग बुरा मान जायेंगे।
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