ग्लोबल वार्मिंग बनाम लोकल वार्मिंग


पेरिस में दुनिया भर के मुल्क जलवायु परिवर्तन के मसले पर विचार करने के लिए एकत्र हुए हैं।वहां कुल जमा कितने देश हैं, इसका किसी को ठीक से पता नहीं।जिस होटल में वे ठहराए गये हैं,उनका कहना है कि वे 200 हैं। जबकि गूगल की बात पर यकीन किया जाये तो सर्वमान्य और विवादग्रस्त मुल्कों की संख्या 181 से लेकर 189 के बीच है। इससे तो यही पता लग रहा है कि मुल्कों को गिनना भी मेंढक तोलने जैसा है।गूगल वाले कन्फ्यूज़ हैं और होटल वाले मुतमईन।वे ‘भूलचूक लेनी देनी’ की सदाशयता के साथ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के समय पूरी  दो सौ प्लेट गिन पा रहे हैं।
पेरिस में ग्लोबल वार्मिंग का मुद्दा गरमाया हुआ है।हमारे यहाँ दफ़्तर के बाबूओं के चेहरे तमतमाए हुए हैं।ठण्ड आ पहुंची है और स्टोरकीपर रूम हीटरों के मरम्मत के लिए टेंडर की फ़ाइल दबाये बैठा है।ऑफिस का वातावरण इस मुद्दे पर इतना गरमाया हुआ है कि बाबू लोगों का बस चले तो वे अपनी-अपनी कमीजें उतारकर खूंटियों पर टांग दें।यदि बड़े साहब के पास उनकी लीव ट्रेवल कन्सेशन(एलटीसी) की  फ़ाइल पैंडिंग पड़ी नहीं रह गयी  होंती तो वे पेरिस जाकर अपनी प्रॉब्लम की फ़ाइल को फ़ीते से बाँध कर नोट ज़रूर ‘पुटअप’ कर आते।
ठण्ड आ रही है।दुनिया के साथ चिरोंजीमल हलवाई भी ‘वार्मिंग’ की समस्या से जूझ रहा है।उसे सब्सीडी वाले गैस सिलेण्डर मिलने बंद होने की डरावनी खबर मिल रही है।कहा जा रहा है कि देशभक्त वही माना जाएगा जो सब्सीडी का त्याग करेगा।वह खुद को भक्त तो मानता है लेकिन महंगा गैस सिलेंडर लेने की अनिवार्यता हज़म नहीं कर पा रहा। उसकी कढ़ाही की ‘वार्मिंग’ का मामला उलझा हुआ है।उसकी भट्टी घटी दरों पर मिली गैस से ठीक तरीके से धधकती है।कौन जाने कमर्शियल सिलेंडर से जली आग पर तली जलेबी कचौरी में से वो पहले वाला स्वाद आये या न आये।
ग्लोबल वार्मिंग वाले राजनेता आइफ़िल टावर के बगलगीर हो कर फटाफट फ़ोटो उतरवा रहे हैं।एक दूसरे को गले लगा कर पारस्परिक देशज रिश्तों की गर्माहट की  थाह पा रहे हैं।विकसित राष्ट्र विकास की ओर अग्रसर मुल्कों को ग्लोबल वार्मिंग के मायने डिक्शनरी में से देख कर बता रहे है।पेरिस वाली ग्लोबल वार्मिंग और हमारी लोकल किस्म की गर्माहट का फ़लक में जमीन आसमान का फ़र्क है। हमारी समस्या ढाबा स्तर की है और पेरिस की सोच फाइव सितारा है।उनको हरदम वार्मिंग टाइप मुद्दों की जरूरत रहती है.हम ठिठुरन से बचने के लिए गर्म ऊनी कपड़ों और सूखी लकड़ियों को लेकर चिंतित हैं। हमारी समस्या जैसे तैसे सिर छुपाने की है उनके सरोकार अपनी छत को हाईटैक बनाने की है.हम अपनी भूख से परेशान हैं और वे सलाद की गुणवत्ता को लेकर बहस में उलझे है.लोकल से ग्लोबल होने के बीच बहुत कुछ उलट पलट हो जाता है.
पेरिस में इकट्ठा हुए ग्लोबल राजनेताओं को दफ़्तर के बाबुओं,चिरोंजीमल हलवाई और आमजन की लोकल लेकिन जेनुइन समस्याओं का तो अतापता भी नहीं है।


टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट